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________________ ( १८८) शङ्का- क्षायिकमाव का भी अभाव होजाता है यह बात हमारी समझ में नहीं आई बल्कि क्षायिकमाव होने पर तो उसका फिर अनन्तकाल तक भी प्रभाव नहीं होता ऐसा कहा हुवा है । अन्यथा वो फिर क्षायिकनानादि का अभाव होगया तो आत्मा में रह ही क्या जाता है ? उत्तर- क्षायिकभाव न रहे तो कुछ भी आत्मा मे न हो यह बात तो बहुत ही मोटी है । संसारी जीव में क्षायिकभाव नहीं, मगर वहां औदयिकादिभाव यथासम्भव होते हैं। सभी सासारिक जीवों में औदयिकभाव के साथ साथ क्षायोपशमिक एवं अशुद्धपरिणामिकमाय होता है । किसी भव्यजीव में उन तीनों के साथ औपशमिकमाव होता है तो किसी के क्षायिकभाव के साथ श्रीदयिकादिकभाव तथा किसी के पांचो ही भाव होते हैं क्यों कि क्षायिक सम्यग्दृष्टिजीव जब उपशमश्रेणि में होता है तो वहां उसके चारित्र तो औपशमिक । सम्यक्त्व-दायिक । ज्ञान-क्षायोपशमिक । मनुष्यपणा औदयिक और सञ्जीविनीशक्ति या भव्यत्व, जो है वह अशुद्धपारिणामिक भाव होता है अरहन्तावस्था में जानादिक तो क्षायिकभाव, मनुष्यत्व और असिद्धत्व वगेरह औदायिकमाव एवं भव्यत्वभाव होता है । परन्तु जहां औदयिकभाव का सर्वथा अभाव हुवा वहां सिद्धदशा में औपशमिक, क्षायोपशमिक क्षायिक और अशुद्धपरिणामिक भी एवं उन पांचों का अभाव होकर सिर्फ शुद्धजीवत्वमात्र रहजाता है । चेतनता का नाम-देखने जानने रूपशक्ति
SR No.010540
Book TitleSamyaktva Sara Shatak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanbhushan Maharaj
PublisherDigambar Jain Samaj
Publication Year
Total Pages425
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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