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जाननेवाला यन जाता है । जैसे वायु के द्वारा कल्लोलान्वित पानी में कुछ नहीं दिखाई देता मगर निर्वातस्तम्भित जल में तमाम आसमान की चोजे झलकने गलती हैं तथा जल की तली में होनेवाली चीजें भी दीख जाया करती है। अस्तु । इमकेबाद क्या होता है सा बताते हैंदेहमतीतो भूत्वा चिदयं परमपारिणामिकभावमयः नीरसवल्कलतोनिस्तुत इवैरण्डवीजपज्जगतिलसतिये। ६५॥
अर्थात् - उपर्युक्त प्रकार से चार घातिया कर्मों का नाश करदेने पर इस आत्मा को क्षायिकमाय की पूर्णप्राप्ति होलेती है किन्तु नाम, गोत्र. वेदनीय और आयु, ये चार अघातिकर्म अवशिष्ट रहते हैं । जिनका कि अनुपक्रमरूप से यथासमय नाश होने पर यह आत्मा शरीररहित होजाता है जैसे अरण्ड बीज के उपर होने वाला छिलका का आवरण सूक कर खुलजाता है तो वह खालिस बीज बन जाता है, वैसे ही यह आत्मा कार्मणशरीर के पूर्णरित्या दूर होजाने पर परमपारिणामिकभाव का धारक स्पष्ट सच्चिदानन्द होजाया करता है उसी का नाम सिद्ध या मुक्त होता है जो कि होकर लोक के शिखर पर जाकर विराजमान हो रहता है । उस समय इसके औदायिक, ज्ञायोपशमिक, औपशमिक और क्षायिकभाव इन चार प्रकार के भावों के साथ साथ भव्यत्व का भी अभाव होकर सिर्फ शुद्धजीवत्वमात्र रह जाता है।