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का अभाव करने रूप ही होते है जैसे कि नारियल के उपर का सुरू का वकल हटादिया जाय तो उसपर जटालता स्पष्ट हो
आती है, उसी प्रकार मिथ्यात्व और अनन्तानुवंधि कषाय निकलजाने पर अप्रत्याख्यानावरण कषाय स्फुट हो रहती है। . फिर नारियल पर की जटावों को दूर किया जाने पर जैसे उसके उपर की टोकसी दिख पड़ती है वैसे ही अप्रत्याख्यानावरण का भी अभाव होचे पर श्रावक के प्रत्याख्यानावरण कपान का उदय प्रगट होता है । उसका भी अभाव करदेने पर सकलसंयमी के संज्वलन कषाय का उदय रहता है जैसे कि टोकसीको भी तोड़कर नारियलका गोला निकालाजाता है मगर उसपर भी लालछिलका उसका और लगाहुवायाको रहजाता है। उसको भी दूर हटाने सेंगोले की स्वच्छता प्रगट होती है अतः अंब उसे दूर करने के लिये पहले तो उसे चाकू वगेरह के द्वारा गोदते हैं फिर उसे छीलते हैं सो छीलने में भी कही छिलके का अंश रहजाता है या गन्दा हाथ लग जाती है इसलिये उसे दुवारा खुरवता पड़ता है, बस यही हाल आठवें नोवें और दशवें गुणस्थान में क्रमसे आत्मा का होता है । सकल संयमावस्था में और सब कपायोंका उदय दूर होकर जो संज्वलन कपाय शेष रह जाती है उसे भी मिटाने का आत्म प्रयत्न होता है अतः वहां वस्तुतः मिश्रोपयोग हुवा करता है। नोट:- याद रहे कि नारियल के साथ टोकसी बगेरह सिर्फ
'उसके उपर होती हैं वैसे ही आत्मा में कषायें नहीं