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________________ .. ................... सम्य क आचार ....................... . ५९ नारी-चर्चा असत्रियं काम रूपेन, कथितं वन विमेषितं । ते नरा नरयं जांति, धर्म रत्न विलोपितं ॥१०॥ इन कामसेना नारियों का, वह अकाट्य प्रभाव है । इनका कथन करता हृदय में, काम प्रादुभाव है। इन नारियों का अतिशयोक्तिक, चित्र जो नर खींचते । वे धर्म-मणि खो. नक में निज नयनवारि उलीचते ॥ स्त्रियाँ काम की मातान अवतार होती हैं। जो इन कामसेना नारियों का अतिशयोक्ति पूर्वक नखशिम्ब वर्णन करते है या उनका बढ़ाकर वर्णन करते हैं, वे मनुष्य अपने धर्म रत्न को खोकर. नक के अवश्यम्भावी पात्र बनन है। राज्य-चर्चा राज्यं का उत्पाद्यन्ते, ममतं गारव स्थितं । रहन आदं, राज्यं वर्न विसेषितं ॥१०१॥ वर्णन किसी भी राज्य का. करना बढ़ाना राग है । इससे भभक उठती है. गारवमयी ममता आग है ॥ करना अलंकृत राज्य वर्णन, यह महा दुख-मूल है । इससे सदा बढ़ता ही जाता, रोद्र-नद का कूल है। अकारण किसी राज्य का प्रमादवश वर्णन करना, संसार के प्रति ममता पैदा कर लेना है । इन राजवंशों के वर्णन से गारव जाग जाता है; मोह पैदा हो जाता है और न मालूम आत्मा को किन २ दोषों का भाजन बनना पड़ता है। राज्यों के वर्णन सुनने से रौद्र ध्यान का चितवन भी हो जाता है जो अत्यंत ही पीड़ा देनेवाला होता है ।
SR No.010538
Book TitleSamyak Achar Samyak Vichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGulabchandra Maharaj, Amrutlal
PublisherBhagwandas Jain
Publication Year
Total Pages353
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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