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________________ व्याख्यान पाँचवाँ योग-परम्परा में प्रा. हरिभद्र की विशेषता-२ आचार्य हरिभद्र ने योग-परम्परा मे कौन-कौनसा और कैसा कैसा वैशिष्ट्य लाने का प्रयत्न किया है इसके बारे मे चौथे व्याख्यान में उनके दो प्राकृत ग्रन्थो को लेकर संक्षेप मे संकेत किया गया है, परन्तु योगपरम्परा मे उनका असाधारण वैशिष्ट्यपूर्ण अर्पण तो उनके उपलव्य दो संस्कृत ग्रन्यो के द्वारा ही जाना जा सकता है । वे दो ग्रन्थ हैं : योगविन्दु और योगदृष्टिसमुच्चय । इन दो ग्रन्थो मे उन्होने योगतत्त्व का ही सागोपांग निरूपण किया है । उन्होने इन संस्कृत ग्रन्थो के अतिरिक्त भी दूसरे 'पोडशक' आदि अनेक प्रकरण-ग्रन्थों मे योगतत्त्व को थोड़ी-बहुत चर्चा तो की ही है, परन्तु प्रस्तुत दो ग्रन्थ उनकी योगचर्चा-विषयक छोटी-बड़ी सभी कृतियो से सर्वथा अलग से पडते है। इतना ही नहीं, उनके समय तक भिन्न-भिन्न धर्मपरम्पराअो ने योग-विपयक जो साहित्य रचा है और जो उपलब्ध है तथा जो मेरे देखने मे आया है, उस समग्र साहित्य की दृष्टि से भी हरिभद्र को प्रस्तुत दो कृतियो का खास निराला स्थान है । जैन और जैनेतर सभी ज्ञात परम्परागो की योग-विषयक कृतियो मे हरिभद्र की प्रस्तुत कृतियो का स्थान कुछ अनोखा है-ऐसा जब कहना हो तव उसके समर्थक थोड़े भी सवल आधारो का निरूपण करना ही चाहिए। इस विचार से इस अन्तिम और पंचम व्याख्यान मे वैसे आधारो की चर्चा करने का सोचा है। प्राचीन जैन आगमो मे प्रतिपादित योग एव ध्यान विषयक समग्र विचारसरणी से तो हरिभद्र सुपरिचित थे ही, साथ ही वे सांख्य-योग, शैव-पाशुपत और बौद्ध आदि परम्पराओ के योग-विषयक प्रस्थानो से भी विशेष परिचित और जानकार थे। इससे उनके समय तक मे शायद ही दूसरे किसी को सूझा हो वैसा एक विचार उन्हे आया हो ऐसा मालूम होता है । वह विचार है : भिन्न भिन्न परम्पराओं मे योगतत्त्व के विषय में मात्र मौलिक समानता ही नही, किन्तु एकता भी है, ऐसा होने पर भी उन परम्परामो में परस्पर जो अन्तर माना या समझा जाता है उसका निवारण करना। हरिभद्र ने देखा कि सच्चा साधक चाहे जिस परम्परा का हो, उसका आध्यात्मिक विकास तो एक ही क्रम से होता है, उसके तारतम्ययुक्त सोपान अनेक
SR No.010537
Book TitleSamdarshi Acharya Haribhadra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvijay, Sukhlal Sanghavi, Shantilal M Jain
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1963
Total Pages141
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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