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दार्शनिक परम्परा मे प्राचार्य हरिभद्र की विशेषता से होता है । इन अनेकविध दर्शनो मे से कोई परम पुरुषार्थ मे साक्षात् उपयोगी है, तो दूसरे परम्परा से । परन्तु अन्ततोगत्वा साक्षात् एव परम्परा से परम-पुरुषार्थ मे उपयोगी होने की शक्यता तो वैदिक दर्शनो मे ही है, और अवैदिक दर्शन तो म्लेच्छ या बाह्य-जैसे होने के कारण सर्वथा वर्जनीय और निराकरण-योग्य हैं। इसी प्रकार सर्वसिद्धान्तसंग्रह का भी प्रारम्भ अवैदिक दर्शनों के निरूपण और उनके खण्डन से होता है। आगे जाकर जब उसके कर्ता वैशेषिक, नैयायिक और भाट्ट दर्शन का निरूपण करते हैं, तब भी वह एक ही बात कहते है कि वैशेषिको ने, १० नैयायिको ने ११ तथा भाट्टो ने १२ वेद-प्रामाण्य का स्थापन किया है और वेदविरोधी दर्शनो का निराकरण किया है-मानो सर्वसिद्धान्तसंग्रहकार के मत से वैशेषिक, न्याय और कीमारिल दर्शन की यही खास विशेषता हो । इसके बाद सर्वसिद्धान्तसंग्रहकार इतर वैदिक दर्शनो का निरूपण करते है। इस ग्रन्थ मे दो विशेषताएं ऐतिहासिक दृष्टि से बहुत महत्त्व की लगती हैं . (१) ग्रन्थकार कहते है कि भारत मे (महाभारत मे) व्यासकथित जो वेद का सार है उसे वैदिक ब्राह्मणो को सर्वशास्त्राविरोधिरूप से साख्य-पक्ष मे से निकालना चाहिए । १३ इसके अतिरिक्त वह कहते है कि श्रुति, स्मृति, इतिहास और भारत आदि पुराणो मे तथा शैवागमो मे साख्यमत स्पष्ट रूप से दिखाई पड़ता है।१४ सर्वसिद्धान्तसग्रहकार का यह वक्तव्य वास्तविक है ।
६ ". वेदबाह्यत्वात्तपा म्लेच्छादिप्रस्थानवत्परम्परयापि पुरुषार्थानुपयोगित्वादुपेक्षगीयत्वमेव । इह च साक्षाद्वा परम्परया वा पुमर्थोपयोगिना वेदोपकरणानामेव प्रस्थानाना भेदो दर्शित ।"
-प्रस्थानभेद १० नास्तिकान् वेदवाह्यास्तान् बौद्धलोकायतार्हतान् । निराकरोति वेदार्थवादी वैशेषिकोऽधुना ॥१॥
-सर्वसिद्धान्तसग्रह, वैशेषिक पक्ष ११ नैयायिकस्य पक्षोऽथ सक्षेपात्प्रतिपाद्यते । यत्तर्करक्षितो वेदो ग्रस्त पाषण्डदुर्जनै ॥१॥
-सर्वसिद्धान्तसग्रह, नैयायिक पक्ष १२ बौद्धादिनास्तिकध्वस्तवेदमार्ग पुरा किल । भट्टाचार्य कुमाराश स्थापयामास भूतले ॥१॥
___--सर्वसिद्धान्तसग्रह, भट्टाचार्य पक्ष १३ सर्वशास्त्राविरोधेन व्यासोक्तो भारते द्विजै । गृह्यते साख्यपक्षाद्धि वेदसारोऽथ वैदिक ॥१॥
-सर्वसिद्धान्तसग्रह, वेदव्यास पक्ष १४ श्रुतिस्मृतीतिहासेषु पुराणे भारतादिके । साख्योक्त दृश्यते स्पष्ट तथा शवागमादिपु ॥ ४ ॥
-सर्वसिद्धान्तसग्रह, साख्यपक्ष