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समय यात्रार्य हरिभव
प्रवेशक है; दूसरी 'सर्वसिद्धान्तसंग्रह' है, जिसके प्रणेता शंकराचार्य कहे जाते है, परन्तु वह श्राद्य शकराचार्य की कृति नहीं है ऐसा निम्ति मालूम होता है, तीमरी कृति 'सर्वदर्शनसंग्रह' है, जो माघवाचार्यकृत है और बहुत सुविदित है, त्रीची कृति जैनाचार्य राजशेखर की है और उसका नाम भी 'पड्दर्शनसमुच्चय' ( प्रकाशक : श्री यशोविजय जैन ग्रन्थमाला, नं० १७, वनारस ) ही है और पाचवी कृति है माधवसरस्वतीकृन 'सर्वदर्शनकौमुदी' । इनमे से केवल सर्वदर्शनसंग्रह के ऊपर ही प्राधुनिक व्याख्या है और वह बहुत विगद भी है, दूसरे ग्रन्थों के ऊपर कोई टोका अथवा टीकाएँ हो तो वह ज्ञान नहीं ।
हरिभद्र के पहले भी समुच्चयान्त कृतियों की रचना शुरू हो गई थी और समुच्चय के अर्थवाला 'संग्रह' पर जिसके अन्त में हो ऐसी भी कृतियां रची जाती थीं । दिनाग का प्रमाणसमुच्चय, प्रसंग का मर्मसमुच्चय और शान्तिदेव के सूत्रममुच्चय तथा शिक्षासमुच्चय जैसे ग्रन्थ समुच्चयान्त कृतियों के उदाहरण हैं, तो प्रस्तावका पदार्थसंग्रह, नागार्जुन का धर्मसंग्रह इत्यादि ग्रन्य संग्रहान्त कृतियों के निदर्शन हैं ।
नर्वनिद्वान्तप्रवेशक के कर्ता का नाम यद्यपि श्रज्ञात है, फिर भी वह जैन कृति है इसमें तो सन्देह नहीं है, क्योकि उसके मंगलाचरण से ही 'सर्वभावप्रणेतारं प्रणिपत्य जिनेव्वरम्' ऐसा कहा है । विपय एवं प्रतिपादकली की दृष्टि ने यह कृति हरिभद्रसूरि के पड्दर्शनसमुच्चय का अनुसरण करती है, अन्तर केवल इतना ही है कि हरिभद्रसूरि का ग्रन्थ पद्य में और मंलिप्त है, जबकि यह कृति गद्य में और तनिक विस्तृत है ।
यद्यपि कालक्रम से विचार करने पर उपर्युक्त पात्रों कृतियों मे राजशेखर का 'पड्दर्शनसमुच्चय, बाढ का है, परन्तु उसकी रचना एक जैनाचार्य ने की है और वह भी हरिभद्र के पड्दर्शननमुच्चय के आधार पर, ऋत. सर्वप्रथम इन दो कृतियों की तुलना करके हम देखेंगे कि राजगेतर की पेला हरिभद्र का दृष्टिविन्दु कितना उदात्त है । हरिभद्र को कृति केवल 3 पचों में पूर्ण होती है, जबकि राजशेखर को रचनामे १८० प है । हरिभद्र ने जिन छ दर्शनो का निरूपण किया है, उन्ही का निरूपरण राजशेखर ने भी किया है । हरिभवने दर्शनी का निरूपण उस उस दर्शन को मान्य देव एवं प्रमाण प्रमेय रूप तत्त्वो को लेकर किया है, जबकि राजशेखर ने देव एवं तत्त्व के अतिरिक्त लिंग, वेप, त्राचार, गुरु, ग्रन्थ और मुक्ति को लेकर भी दर्शनी के भेद का वर्णन किया है । हरिभद्र के संक्षिप्त ग्रन्थ मे उस उस दर्शन का जानने