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दर्शन एव योग के विकास मे हरिभद्र का स्थान
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अपने उपदेशो में अधिक भार दिया है तो वह योग के अंगो पर ही । ३५ अत गुजरात मे योग-परम्परा का व्यावहारिक चित्र अशोक की धर्म-लिपियो मे दृष्टिगोचर होता है। इसके साथ ही जब हम जैन आदि इतर परम्पराओ का विचार करते है तब ऐसा प्रतीत होता है कि शोककालीन गुजरात मे इतर परम्पराएँ भी मानव-धर्म के ऊपर अधिक भार देती होगी । परन्तु अशोक के अनन्तर जब शकयुग आता है और उसमे रुद्रदामा का शासन शुरू होता है तब उस तत्त्वज्ञान और योग- परम्परा के चित्र मे अधिक उभार नजर आता है ।
ईसा की दूसरी शती का रुद्रदामा का वह सुश्लिष्ट संस्कृत भाषा मे निबद्ध लेख मानव धर्म के विशेष परिपालन की बात तो कहता ही है, ३६ साथ ही न्यायवैशेषिक एवं व्याकरण आदि शास्त्रो के ज्ञाता के रूप मे भी उसका निर्देश करता है । ३७ शक होने पर भी एक तो आर्यभाषा संस्कृतमय नाम और उसमे भी शिव का रुद्र के रूप मे निर्देश तथा लेखगत विशेषरणो मे से फलित होने वाला उसका दार्शनिक ज्ञान -- इन सबसे यही सूचित होता है कि अशोक ने बुद्ध भगवान् की सहज प्राकृत भाषा द्वारा जो घोषणा की थी उसे कार्यान्वित करने का प्रयत्न शक सेनापति और सम्भवत रुद्रभक्त रुद्रदामा ने किया और उसे संस्कृत भाषा द्वारा अचल पद भी दिया।
इसके अतिरिक्त अशोक के धर्म के विषय मे देखो डॉ. देवदत्त रामकृष्ण भाण्डारकर रचित और भरतराम भा मेहता द्वारा गुजराती मे अनूदित 'अशोक चरित' प्रकरण ४ । घृति क्षमा दमोsस्तेय शौचमिन्द्रियनिग्रह |
धीविद्या सत्यमक्रोधो दशक धर्मलक्षणम् ॥ ६२ ॥ मनुस्मृति श्रहिंसा सत्यमस्तेय शौचमिन्द्रियनिग्रह | एत सामासिक धर्म चातुर्वण्र्येऽब्रवीन्मनु || विशेष के लिये देखो 'मानवधर्मसार' पृ० ५६-७ ।
- मनुस्मृति
३५ इसी लेखक की पुस्तक 'अध्यात्मविचारणा' का अध्यात्मसाधना नामक प्रकरण, विशेषतया पृ १०२ से ।
३६. यथार्थहस्तो (१३) च्छ्रार्योजतोजितधर्मानुरागेण शब्दार्थगान्धर्वन्यायाद्याना विद्याना महतीना पारणवारणविज्ञानप्रयोगावाप्तविपुलकीर्तिना तुरगगजरथचर्यासिचर्म नियुद्धाद्या.. [ति] परवललाघवमौष्ठवक्रियेण ग्रहरहर्दानमानान (१४) वमानशीलेन स्थूललक्षेण यथावत्प्राप्तर्वलिशुल्कभागै कनकरजतवज्ज्रवैडूर्य रत्नोपचय निष्यन्दमानकोशेन स्फुटलघुमघुर चित्रकान्तशब्दसमयोदारालकृतगद्यपद्य...न प्रमाणमानोन्मानस्वरगतिवर्णासारसत्त्वादिभि (१५) परमलक्षरण - व्यंजनैरुपेतकान्तमूत्र्त्तिना स्वयमधिगतमहाक्षत्रपनाम्ना नरेन्द्रकन्न्यास्वयवरानेकमात्यप्राप्तदाम्न् [] महाक्षत्रपेन रुद्रदाम्ना ...
[१९] पह्लवेन फुलैपपुत्रेरणामात्येन सुविशाखेन यथावदर्थधर्मव्यवहारदर्शनैरनुरागमभिवर्षयता शयतेन दान्तेनाचपलेनाविस्मितेनार्य्यगाहार्येण (२०) स्वधितिष्ठता धर्मकीतियशासि भर्तुरभिवर्द्ध यतानुष्ठितमिति । - गिरनार का रुद्रदामा का शिलालेख
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