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समदर्शी प्राचार्य हरिभद्र श्री हरिहर भाई के पर के स्पष्टीकरण से और जेकोबी एवं ऐतिहासिक विद्वान् पन्यास श्री कल्याणविजयजी आदि के निर्विवाद स्वीकार से हरिभद्र के समय के बारे मे मुनि श्री जिनविजयजी का निर्णय अन्तिम है ऐसा मानकर ही हमे हरिभद्र के जीवन एवं कार्य के विषय में विचारना चाहिए ।
विद्याभ्यास हरिभद्र ने बचपन से विद्याभ्यास कहां और किस के पास किया इसका कोई निर्देश मिलता ही नहीं, परन्तु ऐसा लगता है कि जन्म से ब्राह्मण थे और ब्राह्मण परम्परा मे यज्ञोपवीत के समय से ही विद्याभ्यास का प्रारम्भ एक मुख्य कर्तव्य समझा जाता है । उन्होने वह प्रारम्भ अपने कुटुम्ब मे ही किया हो या आसपास के किसी योग्य स्थान मे, परन्तु इतना तो निश्चित प्रतीत होता है कि उन्होने अपने विद्याभ्यास का प्रारम्भ प्राचीन ब्राह्मण परम्परा के अनुसार संस्कृत भापा से किया होगा। उन्होने किसी-न-किसी ब्राह्मण विद्या-गुरु अथवा विद्या-गुरुयो के पास व्याकरण, साहित्य, दर्शन और वर्मशास्त्र आदि संस्कृत-प्रधान विद्याओ का गहरा और पक्का परिशीलन किया होगा। सामान्यत जैसा वनता आया है वैसा हरिभद्र के जीवन मे भी बना। वह यह कि विविध विद्याप्रो एवं यौवन-सुलभ सामर्थ्य मद ने उन्हे अभिमानपूर्ण प्रतीत हो ऐसा एक सकल्प करने के लिये प्रेरित किया। उनका ऐसा सकल्प था कि जिसका कहा न समभू मैं उसका शिप्य हो जाऊँगा । इस अभिमानसूचक सकल ने उन्हें किसी दूसरी ही दिशा की ओर धकेल दिया।
सिद्धान्त एव आर्य-सिद्धान्त के अनुसार मैने गणित किया, तो उस रीति से भी अधिक वैशाख प्राता है। ब्रह्मसिद्धान्त का प्रचार उस काल मे नही था। ब्रह्मसिद्धान्त के अनुसार भी अधिक वैशाख पाता है । जेकोबी किस प्रकार अधिक चैत्र गिनते है, यह समझ मे नही पाता।
२ जेकोबी इम फुटनोट मे किल्हॉर्न का एक वाक्य उद्धृत करते है। जेकोबी लिखते हैं कि 'Kielhorn has shown from dates in inscriptions that in connection with Saka years almost always ananta months are used ' यहां किल्हॉर्न द्वारा प्रयुक्त almost शब्द सूचित करता है कि उसके देखने में कई ऐसे inscriptions भी पाये होंगे, जिनमे पौणिमान्त महीने हो ।
: एक वात जिस पर जेकोबी का ध्यान नहीं गया वह यह है मेरे पास चालू वर्ष का कागी के प० वापूदेव शास्त्री का पचाग है। वह विक्रम मवत् २०१५ और शालिवाहन गक १८८० का है । उसमे अविक श्रावण है। उसमे मास और पक्ष का क्रम इस प्रकार हैपहले चैत्र शुक्ल, उसके पश्चात् वैशाख कृष्ण, फिर वैशाख शुक्ल आदि । अन्त मे फाल्गुन गुक्ल और चैत्र कृष्ण । इस प्रकार मास पौणिमान्त है और शालिवाहन शक का वर्ष चैत्र गुक्न १ ने प्रारम्भ होता है। इससे वर्ष के अन्त से पहिले का दिन चंत्र कृष्ण १४ पाता है।