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जीवन की रूपरेखा परन्तु उनकी कृतियो एव उनके विचारो मे बहुश्रुत विद्वानो को आकर्षित करने जितना सामर्थ्य तो है ही।
लगभग डेढ-सौ वर्ष पहले पाश्चात्य संशोधक विद्वानो का ध्यान पुरातत्त्व, साहित्य आदि ज्ञान-साधनो से समृद्ध पौरस्त्य भण्डारो की ओर अभिमुख हुआ और प्रो. किल्हॉर्न, व्हयु लर, पिटर्सन, जेकोबी जैसे विद्वानो ने जैन भण्डार देखे और उनकी समृद्धि का मूल्याकन करने का प्रयत्न किया। इसके परिणाम-स्वरूप भारत में तथा भारत के बाहर ज्ञान की एक नई दिशा खुली। इस दिशोद्घाटन के फलस्वरूप आचार्य हरिभद्र, जो कि अब तक मात्र एक परम्परा के विद्वान् और उसी में अवगत थे, सर्व विदित हुए। जेकोबी, लॉयमान, विन्तनित्स, सुवाली और शुकिंग आदि अनेक विद्वानों ने भिन्न-भिन्न प्रसंगो पर प्राचार्य हरिभद्र के ग्रन्थ एवं जीवन के विषय मे चर्चा की है । जेकोबी, लॉयमान, शुब्रिग और सुवाली आदि विद्वानो ने तो हरिभद्र के भिन्न-भिन्न ग्रंथो का सम्पादन ही नहीं, बल्कि उनमें से किसी का तो अनुवाद या सार भी दिया है। इस प्रकार हरिभद्र जर्मन, अग्रेजी आदि पाश्चात्य भापानो के ज्ञाता विद्वानो के लक्ष्य पर एक विशिष्ट विद्वान् के रूप से उपस्थित हुए। दूसरी ओर पाश्चात्य संशोधन दृष्टि के जो आन्दोलन भारत मे उत्पन्न हुए उनकी वजह से भी हरिभद्र अधिक प्रकाश मे पाये। उन्नीसवी शती के वतुर्थ चरण मे गुजरात के साक्षर-शिरोमणि श्री मणिलाल नभूभाई का ध्यान प्राचार्य हरिभद्र के ग्रन्थों की ओर आकर्षित हुआ। इस पुरुषार्थी विद्वान् ने हरिभद्र के जो ग्रन्थ हाथ मे पाये और जो उनकी मर्यादा थी तदनुसार उनमे से खास-खास ग्रन्थों के गुजराती अनुवाद भी प्रस्तुत किये । इस तरह देखते है तो नव-युग के प्रभाव से प्राचार्य हरिभद्र ने किसी एक धर्म-परम्परा के विद्वान् न रहकर साहित्य के अनन्य विद्वान् और उपासक के रूप मे विद्वन्मण्डल मे स्थान प्राप्त किया।
५ प्रो० किल्हॉर्न (१८६९-७०), व्हय लर (१८७०-७१) पिटर्सन (१८८२ से-) इन सव के हस्तलिखित पोथियो की शोध के उल्लिखित वर्षों की रिपोर्ट देखिये। डॉ० हर्मन जेकोवी ने, जब वह सन् १९१४ मे भारत आये थे तब, जैन भण्डारो का निरीक्षण किया था।
६ डॉ० हर्मन जेकोबी ने 'समराइच्चकहा' का सम्पादन किया है तथा उसका अग्रेजी मे सार भी दिया है । प्रो० सुवाली ने 'योगदृष्टिसमुच्चय', 'योगविन्दु', लोकतत्त्वनिर्णय, एव 'पड्दर्शनसमुच्चय' का सम्पादन किया है, और 'लोकतत्त्वनिर्णय' का इटालियन मे अनुवाद भी किया है।
७ (१) षड्दर्शनसमुच्चय, (२) योगविन्दु, (३) अनेकान्तवादप्रवेश । 'मणिलाल नभूभाई साहित्य साधना' पृ० ३३६ ।