________________
जणावनारा होवाथी दरेक बाळजीवोना उपकारक छे तेम जाणी तेना भाषांतर छपाव्या छे, हालमां आ समवायांगसूत्र के जेमां कथानुयोग अति अल्प छे, द्रव्यानुयोग घणो मोटो छे अने गणितानुयोग तथा चरणकरणानुयोग थोडा विस्तारथी कहेल छे, ते प्रकरणादिक ग्रंथो जाणनारने बहु उपयोगी छे. तेने माटे प्रयास कर्यो छे. आ सूत्रनी रचना जोइने एंवो तर्क थइ शके छे के गुरुमहाराजा सुबोध शिष्योनी परीक्षा लेवा माटे प्रश्न करे के आ चौद राजप्रमाण समग्र लोकमां एक संख्यावाळा पदार्थ कया कया छे ? वे संख्यावाळा कया कया छे ? ए ज प्रमाणे त्रण, चार, पांच विगेरे सो संख्यावाळा कया कया छे? पछी दोढसो, बसो, अढीसो विगेरे पांच सो सुधी पछी छसो, सात सो विगेरे हजार सुधी कया कया छे ? ( आ सर्व विषयानुक्रममांथी जाणी लेवुं ). आ प्रश्नोना उत्तरो सूत्रोना अभ्यासी शिष्योए आप्या होय अथवा तो शिष्योने शीखववा माटे गुरुमहाराजाए ज तेमनी पासे आ सर्व स्थानो कह्यां होय एम. पण मानी शकाय छे. आवां स्थानोवालुं त्रीजुं स्थानांग सूत्र पणः छे. तेमां मात्र एकथी दशसुधीना स्थानो ज आप्यां छे, परंतु तेना मूळमां अने टीकामां घणो विस्तार छे अने आ सूत्र करतां ते सूत्र वधारे गंभीर होवाथी अति कठण छे. तेथी करीने ज अमे आ सूत्रर्नु भाषांतर.
आ सूत्रनुं माहात्म्य के टूंक रहस्य कही शकाय तेम नथी, तोपण जिज्ञासुजनो आनो विषयानुक्रम वांचवाथी कांइक समंजी शकशे. खरी रीते तो आ आखुं सूत्र ज साद्यंत वांचवा, भणवा, भणाववा अने मनन करवा लायक छे. आ सूत्रनं एकाग्रचित्ते. • पठनपाठनादिक करतो जिज्ञासु जन केवळ धर्मध्यानमां ज तन्मय बनी सर्व शारीरिक अने मानसिक आधि, व्याधि अने उपा घिथी मुक्त थइ आनंदामृतरसना आस्वादनी वानकीने पामे छे एम कहेवुं अतिशयोक्तिवालुं नथी.
उपर का प्रमाणे आ ग्रंथना भाषांतरनी अने छपाववानी शरुआत गुरुणीजी लाभश्रीजीना उपदेशथी ज करी हती अने