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प्रस्तावना
श्री समवायाङ्ग
सूत्र ॥ बोधु अंग
नुयोग अने धर्मकथानुयोग ए चार अनुयोग कहेवामां आवे छे. तेमां कोइ अंगमा द्रव्यानुयोग कहेवामां आवे छे, कोइमां गणितानुयोग कहेवामां आवे छे एम जुदा जुदा अनुयोग जुदा जुदा अंगमा कहेवामां आवे छे. तेम ज कोइ कोइ अंगमां बे, त्रण के चारे अनुयोग पण कहेवामां आवे छे. आ प्रमाणे मोक्षमार्ग देखाडवा माटे श्रीवीतराग देवे समवसरणमा उपदेशद्वारा सर्व प्रकारनो धर्म कयो छे, तेने गणधरोए सूत्र (द्वादशांगी ) तरीके रच्यो छे. त्यारपछी तेमना शिष्योए प्रकीर्णको रच्या छे, त्यारपछी उत्तरोत्तर तेमना शिष्य-प्रशिष्यादिके प्रकरणो, चरित्रो विगेरे आगमानुसार रची भव्य जीवोनो उपकार कर्यो छे. तेम ज आगमना अर्थ पण दुर्गम होवाथी समयानुसार महात्मा आचार्योए तेनी टीका करी शासननी प्रभावना करी छे. तोपण आ जिनागमनु यथार्थ रहस्य जाणनार आ समये तो विरला.ज महात्माओ छे, तेथी अल्पज्ञानवाळा साधु-साध्वीओ पोताने आत्मज्ञान थवा साथे साथे. उपदेशद्वारा अन्य भव्य प्राणीओनो उपकार करी शके तथा धर्मानुरागी स्व-पर दर्शनीओ के जेओ फरजीयात सांसारिक कार्योमां गुंचवायेला होवाथी संस्कृत, प्राकृत के तेवा प्रकारनो उच्च धर्मशास्त्राभ्यास करी शकता नथी, तेओ तथाप्रकारना गुर्वादिकना संयोगने अभावे स्वतंत्रपणे धर्मतत्त्व समजी शके अने पोतानो सामायिकादिक विगेरेमा जतो समय धर्मध्यानमा व्यतीत करी शके तेटला माटे केटलाक वर्पोथी केटलीक संस्थाओ पूज्य गुरुमहाराजना उपदेशथी तथा केटलाक धर्मिष्ठ गृहस्थोनी प्रेरणा अने सहायथी केटलाक ग्रंथोना भाषांतरो छपावी प्रसिद्ध करवा उत्साहित थयेली छे. तेमां आ श्री जैन धर्म प्रसारक सभाए नवकार अने प्रतिक्रमण सूत्रथी आरंभीने आगम पर्यंत घणा ग्रंथो, मूळ सूत्रो अने टीका तथा भाषांतर पण छपाव्या छे. तेमां छेल्ला १५ वर्षथी गुरुणीजी श्री लाभश्रीजीना उपदेशथी सूत्रोना भाषांतरो छपाववा शरु कर्या छे अने उत्तराध्ययन विगेरे दश सूत्रो कथानकद्वारा धर्मतत्त्वने