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समवायाङ्ग
सूत्र ॥
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मानुषोत्तर अने लोकहित नामना विमानमां देवपणे उत्पन्न थया होय, ते देवोनी उत्कृष्ट स्थिति एक सागरोपमनी कही छे. १५ | ते देवो एक अर्धमासे एटले एक एक पखवाडीए आणप्राण ले छे एटले के उच्छ्वास निःश्वास ले छे. १६ । ते देवोने एक हजार वर्षे आहारनो अर्थ ( इच्छा ) उत्पन्न थाय छे. १७ । जेनी सिद्धि थवानी छे एवा (भव्य ) जे केटलाक देवो छे, तेओ एक ( मनुष्यना ) भवने ग्रहण करवा वडे सिद्ध थशे, बुद्ध थशे, मुक्त थशे, परिनिर्वाण पामशे, एटले के सर्व दुःखोनो अंत करशे. १८ ॥ सूत्र ॥ १ ॥
टीकार्थ:-- अहीं 'जंबुद्दीवे ' विगेरे प्रथमनां सात सूत्रो आश्रयविशेषनां छे ( एटले के जंबूद्वीप, अप्रतिष्ठान नरक, 'पालक विमान अने सर्वार्थसिद्ध विमान ए चार तथा आर्द्रा, चित्रा अने स्वाति ए त्रण नक्षत्र मळी कुल सात सूत्रो स्थान - पृथ्वीने सूचन करनारा छे ) अने 'इमीसे णं रयण०' विगेरे अढार सूत्रो स्थित्यादिक धर्मवाळा ( स्थिति - आयुष्य विगेरेने एटले स्थिति, उच्छ्वास, निःश्वास, आहार अने मोक्षनी प्राप्तिने देखाडनारा ) छे ( एटले ते ते स्थाने रहेला जीवोनी स्थित्यादिक देखाडनारा छे.) ए सर्व सूत्रोनो अर्थ सुगम छे. तेमां जे विशेष कहेवा लायक छे, ते कहे छे. -- जंबूद्वीपना सूत्रमां ' आयाम - विष्कंभवडे ' एवो कोइ ठेकाणे पाठ देखाय छे, अने कोइ ठेकाणे चक्रवाल विष्कंभवडे एवो पाठ छे. मां प्रथम पाठ ठीक संभवे छे, केमके अन्य स्थळे पण तेवो पाठ सांभळवामां छे. तेनो अर्थ सुगम छे. अने बीजा पाठनो अर्थ आ प्रमाणे छे. चक्रवाल विष्कंभवडे एटले गोळ विस्तारवडे. अहीं लाख योजननुं जे प्रमाण कयुं छे ते प्रमाणांगुळना योजन समजवा. ते विषे कयुं छे के - " वस्तु ( पदार्थों ) नुं मान आत्मांगुले करवानुं छे, शरीरनुं मान उत्सेधांगुले
चो अंग ॥
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