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________________ - मू--जंबुद्दीवे णं दीवे भारहे वासे आगमिस्साए उस्सप्पिणीए बारस चकवहिणो भविस्सति, तं जहा--भरहे य दीहदंते गूढदंते य सुद्धदंते य । सिरिउत्ते सिरिभूई सिरिसोमे य सत्तमे ॥ ८१ ॥ पउमे य महापउमे विमलवाहणे विपुलवाहणे चेव । वरिट्टे बारसमे वुत्ते आगमिसा भरहाहिवा ॥ ८२ ॥ एएसि णं बारसण्हं चक्कवट्टीणं बारस पियरो भविस्संति बारस मायरो भविस्संति बारस इत्थीरयणा भविस्संति ॥ मूलार्थः-आ जंबूद्वीप नामना द्वीपने विषे भरतक्षेत्रने विषे आवती उत्सर्पिणीमां बार चक्रवर्तीओ थशे, तेना नामो आ प्रमाणे-भरत १, दीर्घदंत २, गूढदंत ३, शुद्धदंत ४, श्रीपुत्र ५, श्रीभूति ६, सातमा श्रीसोम ७, (८१).. पद्म महापद्म ९, विमलवाहन १०, विपुलवाहन ११ अने बारमा वरिष्ट १२-आ बार भरतना अधिपति आगामी काळे थशे एम कहुं छे. (८२) ॥ आ बार चक्रवर्तीना बार पिता. थशे, बार माता थशे अने बार स्त्रीरत्न थशे ॥ - मू०-जंबुद्दीवे णं दीवे भारहे वासे आगमिस्साए उस्सप्पिणीए नव बलदेववासुदेवपियरो भविस्संति, नव वासुदेवमायरो भविस्संति, नव बलदेवमायरो भविस्संति, नव दसारमंडला भविस्संति, तं जहा-उत्तमपुरिसा मज्झिमपुरिसा पहाणपुरिसा ओयंसी तेयंसी एवं सो चेव %ERB
SR No.010536
Book TitleAgam 04 Ang 04 Samvayang Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJethalal Haribhai
PublisherJain Dharm Prasarak Sabha
Publication Year1939
Total Pages681
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_samvayang
File Size44 MB
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