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________________ नाम कवाय छे, तथा गति, जाति विगेरे कर्म के जे प्रकृति विगेरे भेदोवडे चार प्रकारनुं छे, तेनो जे स्थितिरूप भेद छेते स्थितिनाम कवाय छे, ते स्थितिनामनी साथै निधत्त ( स्थापन करेलुं ) जे आयु ते स्थितिनामनिधत्तायु कहीए. 'इति । तथा 'एसनामनिधत्ताउए त्ति '- प्रदेशोनो एटले परिमित प्रमाणवाळा आयुकर्मना दळीयानो जे नामपरिणाम एटले तथाप्रकारे आत्माना प्रदेशनी साथै संबंध ते प्रदेशनाम कहीए, अथवा जाति, गति अने अवगाहनारूप कर्मनुं जे प्रदेशरूप नामकर्म ते प्रदेशनाम कहीए, तेनी साथे जे निधत्त एवं आयु ते प्रदेशनामनिधत्तायु कहीए. इति । तथा agartraitase त्ति ' - अनुभाग एटले आयुकर्मना द्रव्य ( दळीया ) नो जे तीव्रादिक भेदवाको रस, तेरूपी नाम - परिणाम अथवा तेनो नाम-परिणाम ते अनुभागनाम कहीए, अथवा तो गत्यादिक नामकर्मना अनुभागबंधरूप जे भेद ते अनुभागनाम कहीए, तेनी साथै जे निधत्त एवं आयु ते अनुभागनामनिधत्तायु कहेवाय छे. इति । तथा ' aareerata निघत्ताउए ति '--जेने विषे जीव अवगाहे ते अवगाहना एटले औदारिक विगेरे पांच प्रका " शरीर, तेना कारणरूप जे कर्म ते पण अवगाहना कहेवाय छे, ते अवगाहनारूप जे नामकर्म ते अवगाहना नाम कहेवाय छे. तेनी साथे जे निधत्त एवं आयु ते अवगाहनानामनिधत्तायु कहेवाय छे । ' नेरइयाणं ' इत्यादि सूत्र स्पष्ट छे. इति ॥ उपर आयुबंध को हवे बांधेला आयुष्यवाळानो नारकादिक गतिमां उपपात ( उपजवुं ) थाय छे, तेथी तेना विरहकाळनी प्ररूपणा करवा माटे कहे छे-
SR No.010536
Book TitleAgam 04 Ang 04 Samvayang Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJethalal Haribhai
PublisherJain Dharm Prasarak Sabha
Publication Year1939
Total Pages681
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_samvayang
File Size44 MB
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