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एटले अंग अने प्रत्यंगवडे चोतरफथी पान करे छे? 'ततो परिणामणय त्ति--त्यारपछी नहीं] पीधेलानी उपात्ता एटले इंद्रियादिकना विभागवडे परिणति करे छ (परिणमावे छे)? 'ततो परियारणय त्ति'-त्यारपछी शब्दादि विषयोनो उपभोग करे छे ? ' ततो पच्छा विउठवणय त्ति'---त्यारपछी विक्रिया (विकुर्वणा) एटले विविध रूपो करे छे ? (आ प्रमाणे गौतमस्वामीना प्रश्ननो जवान प्रभु आपे छे के)'हंता गोयमा!'--हे गौतम! हा, एम ज छे. ए प्रमाणे सर्व पंचेंद्रियोनो आहार विपय कहेवो. विशेप ए के-देवोने पहेली विकुर्वणा अने पछी परिचारणा (शब्दादि विषयनो भोग) होय छे अने वीजाओने पहेली परिचारणा अने पछी विकुर्वणा होय छे. तथा एकेंद्रियादिकना विषयमां पण ए ज प्रमाणे प्रश्न जाणवो, तेना जबावमा तो आ प्रमाणे जाणवू--ज्यां चैक्रियनो संभव नथी, त्यां विकुर्वणानो निषेध कहेवो. आ प्रमाणे पहेलं आहार पद कहे. इति । जेम अहीं प्रथम द्वारना प्रश्न कह्या तेज प्रमाणे तेनो उत्तर अने बीजा द्वारोने कहेता एवाए (आचार्य) प्रज्ञापना सूत्रर्नु परिचारणा पद नामर्नु चोत्रीशमुं पद कहेg. तो आहारना विचारनुं प्रधानपणुं होवाथी आ आहारपद कयुं छे, तेनो अर्थ आ प्रमाणे छे--तेमां' आहाराभोगणाइय त्ति,'आनुं विवरण (टीका ) आ प्रमाणे छे--हे भगवान! नारकीओनो आहार शुं आभोगवडे थाय छे के अनाभोगवडे थाय छे ? बन्ने प्रकारे थाय छे, ए एनो उत्तर छे. ए ज प्रमाणे सर्व जीवोनो आहार जाणवो. विशेप ए केएकेंद्रियोनो आहार अनाभोगथी ज नीपजेलो होय छे. तथा ' पोग्गला नेव जाणंति त्ति,' आनो अर्थ आ प्रमाणे छे--नारकीओ जे पुद्गळोनो आहार करे छे, ते पुद्गळोने अवधिज्ञानवडे पण जाणी शकता नथी; केमके ते नारकीओने