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नारकादि
आयुविचार ॥
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श्री. अने अपर्याप्ताना लक्षणवाळा त्रण गमाए करीने नारकीओनी, विशेष प्रकारना नारकीओनी अने तिर्यंचादिकनी स्थिति समवायाङ्ग कही छे तेम अहीं पण कहेवी. क्यां सुधी कहेवी ? ते कहे छे-'जाव विजयेत्यादि'-एटले के अनुत्तर देवोनी
ओधिक, अपर्याप्तक अने पर्याप्तकनी स्थितिबाळा त्रण गमा सुधी कहेवी. अहीं अतिदेश ( भळामण) करेला सूत्रोनो अर्थ चोपं अंग || आ प्रमाणे कहेवो-भगवान ! रत्नप्रभाना नारकीओनी केटली स्थिति छ ? हे गौतम ! जघन्यथी दश हजार वर्षनी ।
| अने उत्कृष्टथी एक सागरोपमनी छे. १. हे भगवान! रत्नप्रभा पृथ्वीना अपर्याप्ता नारकीओनी स्थिति केटलो काळ कही।
छ ? हे गौतम! (जघन्य अने उत्कृष्ट एम) बन्ने प्रकारे अंतर्मुहर्तनी ज कही छे. २. तथा पर्याप्ताओनी तो जे सामान्य कही छे ते ज एक अंतर्मुहूर्त ओछी कहेवी. ३." ए ज प्रमाणे शेष पृथ्वीना नारकीओनी प्रत्येकनी, असुरादिक दशेनी,
पृथ्वीकाय विगेरेनी, तिर्यंचोनी, गर्भज अने इतर ( संमूर्छिम ) भेदवाळा मनुष्योनी, आठ प्रकारना व्यंतरोनी, पांच प्रकाNEL रना ज्योतिपीओनी अने सौधर्मादिक वैमानिकोनी स्थिति संबंधी त्रण त्रण गमा कहेवा. केटले दूर सुधी कहेवा ? ते कहे
छे-'जाव विजयेत्यादि'-अहीं विजयादिकने विपे जघन्यथी बत्रीश सागरोपमनी स्थिति कही छे, तेज प्रमाणे गंधहस्ती विगेरेना ग्रंथोमां पण देखाय छे, परंतु प्रज्ञापना सूत्रमा तो (जघन्य) एकत्रीश सागरोपमनी कही छे, ते मतांतर | जाणवू, अहीं पर्याप्तक अने अपर्याप्तकना चे गमा पोतानी मेळे जाणी लेवा. एज प्रमाणे सर्वार्थसिद्धि विमानना देवोनी से स्थिति पण त्रण गमावडे कहेवी ॥ सूत्र-१५१ ।। - उपर नारकादिक जीवोनी स्थिति कही. हवे तेओना शरीरनी अवगाहना प्रतिपादन करवा ( कहेवा) माटे कहे छे
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