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________________ Fol 'वितिमिर त्ति'-चोतरफथी दुर करवा लायक एवा अंधकारथी रहित होवाथी वितिमिर छे, तथा 'विसुद्ध त्ति'स्वाभाविक अंधकार रहित होवाथी अथवा समग्र दोष रहित होवाथी विशुद्ध छे, तथा सर्व रत्नमय छे परंतु काष्ठ विगेरेना दळवाळा नथी, तथा आकाशस्फटिकनी जेवा अच्छ--स्वच्छ छे, सूक्ष्म स्कंधमय होवाथी श्लक्ष्ण छ, कठण सराणवडे पथ्थरनी प्रतिमानी जेम घृष्ट-घसेलानी जेवा घसेला छे, तथा कोमळ सराणवडे पथ्थरनी प्रतिमानी जेम मृष्ट--मठारेलानी जेवा मठेला छे, तथा कलंक रहितपणुं होवाथी अथवा कर्दम ( कादव ) विशेषनो अभाव होवाथी निष्पंक छे, तथा निष्कंटक एटले कवच रहित--आवरण रहित-उपघात रहित छाया-दीप्ति छे जेनी ते निष्कंटकछाय कहीए, एवा छे, तथा प्रभावाळा, समरीच-किरणोवाळा, उद्योत सहित एटले बीजी वस्तुने प्रकाश करनारा, 'पासाइया' इत्यादिकनो अर्थ पूर्वनी पेठे जाणयो । “ सोहम्मे णं भंते कप्पे केवइया. "हे भगवान ! सौधर्म कल्पने विषे केटला विमानो कह्या छे ? हे गौतम ! वत्रीश लाख विमानो कह्या छे, एज प्रमाणे ईशान विगेरे कल्पने विपे पण जाणवा. ते ज कहे छ-' एवं ईसाणाइसु त्ति,'' गाहाहिं भाणियब्वं ति'-" बत्तीस अट्ठावीसा" इत्यादिक पूर्व कहेली गाथाओने अनुसारे कहेवा. दरेक कल्प प्रत्ये भिन्न परिमाणवाळा विमानावासो कहेवा, तथा तेनो वर्णक कहेवो. 'जाव ते णं विमाणा' त्यांथी लइने 'पडिरूवा' सुधी वर्णक कहेवो. तेमां विशेष ए के तेना आलावानो भेद आ प्रमाणे कहेवो-" हे भगवान ! ईशानकल्पमा केटला लाख विमानावासो कह्या छ ? हे गौतम ! अट्ठावीश लाख विमानावासो कया छे एम तीर्थकरोए कयुं छे. ते विमानो यावत् प्रतिरूप छे, ए प्रमाणे सर्व पूर्वे कहेली गाथाओने अनुसारे अने प्रज्ञापना सूत्रना
SR No.010536
Book TitleAgam 04 Ang 04 Samvayang Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJethalal Haribhai
PublisherJain Dharm Prasarak Sabha
Publication Year1939
Total Pages681
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_samvayang
File Size44 MB
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