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समवायात
सूत्र ॥
अंग
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'तह चैव वण्णओ त्ति ' – जे प्रकारे असुरकुमारना भवनोनो वर्णक कह्यो छे, ते प्रकारे सर्वेनो वर्णक कहेवो. ते आ प्रमाणे- "केवइया णं भंते ! नागकुमारावाससयस हस्सा० " " हे भगवान ! नागकुमारना आवासो केटला लाख का छे ? हे गौतम ! आ रत्नप्रभा पृथ्वी एक लाख ने एंशी हजार योजन बाहल्यवाळी छे, तेनी उपरथी एक हजार योजन अवगाहने तथा नीचे एक हजार योजन वर्जीने मध्ये एक लाख ने अहोतेर हजार योजन रह्या ते ठेकाणे रत्नप्रभाना पोलाणमां (प्रतरोना आंतरामां ) चोराशी लाख नागकुमारना आवासो छे एम में कह्युं छे. ते भवनो इत्यादि पूर्ववत् कहेवुं. तथा ( सुवर्णकुमारना ७२ लाख अने वायुकुमारना ९६ लाख छे.) द्वीपकुमारादिक छ प्रकारना देवोना प्रत्येकना छोंतेर छोंतेर लाख आवासो कहेवा. ||
"केवइया णं भंते ! पुढवि० " इत्यादि सूत्र सुगम छे. विशेष ए के - मनुष्यो संख्याता ज छे, केमके गर्भज मनुष्यो असंख्याता छे ज नहीं, तेथी तेना ( गर्भज मनुष्योना ) संख्याता ज आवासो छे, अने संमूच्छिम मनुष्यो असंख्याता छे तेथी दरेक शरीरे आवास होवाथी असंख्याता आवासो छे ॥
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“ केवइया णं भंते जोइसियाणं विमाणावासा " इत्यादि, ( सुगम छे. तेमां विशेष ए के ) मूसियपहसिय त्ति " - अभ्युद्गत एटले उत्पन्न थयेली अने उत्सृत एटले प्रचळपणाए करीने सर्व दिशाओमां प्रसरेली अब्भुग्णयजे प्रभा एटले दीप्ति, ते वडे सिता एटले शुक्ल ( उज्ज्वळ ) एवा विमान आवासो छे, तथा विविध एटले अनेक प्रकारना मणि एटले चंद्रकांत विगेरे अने रत्न एटले कर्केतन विगेरे, तेओनी भक्ति एटले रचना विशेष, तेवडे चित्र एटले चित्र
देवसंबंधी विचार ॥
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