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समणायाङ्ग सूत्र ॥
चो अंग
॥२६२॥
तिच अने मनुष्यो संमूर्छिम अने गर्भज एम वे प्रकारना छे. तेमां जे संमूहिम छे ते एकला नपुंसक ज छे, अने बीजा ( गर्भज ) जे छे ते त्र लिंगवाळा (पुल्लिंग, स्त्रीलिंग, नपुंसकलिंगवाळा ) छे. तेमां पण गर्भज मनुष्यो ऋण प्रकारना छेभूमि, कर्मभूमि ने अंतरद्वीपज. तेमां कर्मभूमिज वे प्रकारना छे-आर्य अने म्लेच्छ. आर्य वे प्रकारना छेऋद्धिने पामेला अने ऋद्धिने नहीं पामेला. तेमां पहेला ( ऋद्धिवाळा ) अरिहंत विगेरे छे. बोजा ( ऋद्धि रहित ) नव प्रकारना छे -- क्षेत्र, जाति, कुळ, कर्म, शिल्प, भाषा, ज्ञान, दर्शन अने चारित्र. हवे देवो चार प्रकारना छे - भवनपति विगेरे. • तेमां असुर, नाग, विगेरे दश प्रकारना भवनपति छे, पिशाच विगेरे आठ प्रकारना व्यंतर छे, चंद्र विगेरे पांच प्रकारना ज्योतिष छे अने कल्पोपपन्न अने कल्पातीत ए वे प्रकारे वैमानिक छे. तेमां सौधर्मादिक बार प्रकारना कल्पोपपन्न छे, अने कल्पातीत वे प्रकारना छे— ग्रैवेयक अने अनुत्तरोपपातिक. तेमां ग्रैवेयक नव प्रकारे छे अने अनुत्तरोपपातिक पांच प्रकारे छे. आ सर्व सूचवन करता ग्रंथकारे कछु के-' जाव से किं तं अणुत्तर ० ' इत्यादि ।
हवे पूर्वे कला जीवराशिने ज दंडकना क्रमवडे वे प्रकारे देखाडता सता कहे छे के – ' दुविहेत्यादि, ' आ सूत्र सुगम छे. विशेष ए के ' दंडओत्ति ' - ( ते दंडकनी गाथानो अर्थ आ प्रमाणे छे ) - " नारकीनो एक, असुरादिकना दश, पृथिव्यादिकना पांच, द्वींद्रियादिकना चारे, मनुष्यनो एक, व्यंतरनो एक, ज्योतिषनो एक अने वैमानिकनो एक. आ प्रमाणे चोवीस दंडक छे. '
१. द्वींद्रिय, श्रींद्रिय, चतुरिंद्रिय, ने तिथंच पंचेंद्रिय- एम ४ ।
वे राशि विचार ॥
॥२६१ ॥