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________________ | वस्तुना विस्तार ( समूह ) ना स्वभाव ( स्वरूप ) ने प्रगट करनार केवळज्ञाने करीने सहित श्रीमहावीरस्वामीना वचननो ॥ आश्रय ( आधार ) होवाथी आ मारुं वचन निर्विवादपणे प्रमाणभूत छ एम शिष्यनी बुद्धिने विष आरोपण करता सुधर्मास्वामी प्रथम आ संबंधना सूत्रने कहे छे.-- मू०-सुयं मे आउसं तेणं भगवया एवमक्खायं' अर्थ:-हे आयुष्मान ( जंबू )! में सांभळ्यु छ के-ते भगवाने आ प्रमाणे कयुं छे- टीकार्थः-ते एटले जे आ रागद्वेषादिक विषम भावशत्रुना सैन्यने मूळ सहित उखेडी नांखवाथी तथा त्रण भुवनना | समग्र पदार्थोने प्रकाश करनार केवळज्ञानवडे पोताना अनुभवपूर्वक विसंवाद रहित वचनवाळा होवाथी त्रणभुवनरूपी धरना आंगणामां जेनो अमृत जेवो उज्ज्वळ यशसमूह प्रसरेलो छ तेवा आ भगवान-समग्र ऐश्वर्यादिक समृद्धिए करीने सहित महावीरस्वामीए आ प्रमाणे एटले आगळ कहेवामां आवशे ते प्रमाणे आत्मादिक वस्तुतत्त्वने कह्यु छे. अथवा 'आउसंतेणं' ए, आखं पद भगवाननुं विशेषण तरीके कर. एटले आयुष्यवाळा-चिरकाळना जीवितवाळा एवा भगवाने अथवा पाठांतरवडे 'आवसता ' ए, पद करीने 'मया' नुं विशेषण कर, एटले के गुरुकुळने विषे वसता अथवा विनयने निमित्ते वे करतलवडे गुरुना वे चरणकमळने 'आमृशता' एटले स्पर्श करता एवा में, अथवा 'आउसंतेणं' एटले प्रीतियुक्त मनवडे सेवा करता एवा में ( आ प्रमाणे सांभळधुं छे.) । भगवाने जे का छे ते हवे कहेवाय छ–'एगे आया' इत्यादि. अन्य कोइ वाचनामां बीजी रीते संबंधनुं सूत्र
SR No.010536
Book TitleAgam 04 Ang 04 Samvayang Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJethalal Haribhai
PublisherJain Dharm Prasarak Sabha
Publication Year1939
Total Pages681
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_samvayang
File Size44 MB
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