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| जेवा के - रत्नोवडे उज्वळ लक्ष योजन प्रमाण विमाननी रचना, सामानिक विगेरे देव देवीनी अनेक कोटिनो समूह, मणिना समूहवडे शोभित लांबा दंड उपर फरकती नानी पताकाओना सेंकडाओथी शोभता महाध्वज ( इंद्रध्वज ) नुं आगळ चालवं, अने विविध प्रकारना वाजित्रोना नादवडे आकाशनो विस्तार भरी देवो विगेरे, तथा प्रतिकल्पित गंधहस्तीना स्कंध उपर चढवुं, चतुरंगी सेनानो परिवार अने छत्र, चामर, महाध्वज विगेरे महाराजाओना चिह्ननुं देखाडवु, आ विगेरे संपत्तिना विशेष समवसरणni जवानी प्रवृत्तिवाळा वैमानिक, ज्योतिषी, भवनपति, व्यंतर अने राजादिक मनुष्योना होय छे, अथवा तो अनुत्तर विमानमा जे साधुओ उत्पन्न थवाना होय तेमने पण आवा प्रकारना देवादिक संबंधी ऋद्धिविशेषो होय छे, ते आ सर्व आ अंगमां कहेवाय छे एम क्रियापदनो संबंध करवो । तथा पर्षदा एटले साधुओ, वैमानिक देवीओ अने साध्वीओ पूर्वद्वावडे प्रवेश करीने श्रीमहावीरस्वामीने ( प्रदक्षिणा दइने ) विगेरे कह्या प्रमाणे ( बार प्रकारनी) पर्षदानो प्रादुर्भाव एटले आगमन थाय छे. क्यां १ ते कहे छे - जिनेश्वरनी समीपे, तथा जे प्रकारे एटले पांच प्रकारना अभिगमादिवडे राजा विगेरे जिनेश्वरनी सेवा करे छे ते प्रकारे आ अंगमां कहेवाय छे एम संबंध जाणवो। तथा जे प्रकारे लोक'गुरु एटले जिनेश्वर देव, मनुष्य अने असुरना समूहने धर्म कहे छे, अने ते जिनेश्वरनुं भाषित (धर्मोपदेश ) सांभळीने अवशेष एटले प्राये करीने क्षीण थया छे कर्म जेना एवा अने विषयोथी विरक्त थयेला एवा नरो एटले मनुष्यो जे रीते घणा प्रकारना संयम अने तपरूपी उदार धर्मने अंगीकार करे छे, तथा जे रीते घणा वर्षो सुधी संयम अने तपने अनुचर्य एटले सेवीने त्यारपछी आराध्या छे ज्ञान, दर्शन अने चारित्रना योग जेमणे एवा, तथा 'जिणवयणमणुगय महिय भासिय त्ति'--