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________________ समवायाङ्ग बो, अंग ॥२३५॥ प्रथम वर्गनी अपेक्षाए ज घटी शके छे. केमके नंदीमां पण तेजप्रमाणे कयुं छे तेथी. वळी अहीं जे सात वर्ग कह्या ते प्रथम वर्गने अनुत्तरोपछोडीने अन्य वर्गनी अपेक्षाए कह्या छे केम के अहीं आठ वर्ग छे. (ते दरेक वर्गमा १०-१०-१३-१०-१०-१६-१३-१० कुल ९२ IN पातिक अध्ययनो छे.) नंदीमां पण ते जप्रमाणे कयुं छे. तेनी वृत्ति (टीका) आप्रमाणे छे-'अट्ट बग्गत्ति'-अहीं वर्ग एटले समूह परिचय। जाणवो. ते समूह अंतकृतोनो अथवा अध्ययनोनोजाणवो. ते सर्व एक वर्गमा रहेलाएकी साथे उद्देशाय छे, तेथी करीने का के'अट्ठ उद्देसणकाला' (आठ उद्देशनना काळ छे) इत्यादि. अहीं मूळ सूत्रमा दश उद्देशनना काळ छे एमजे कयु छ तेनो अभिप्राय अमे जाणता नथी। तथा कुल संख्याता लाख पदो छे, ते त्रेवीश लाख ने चाळीश हजार छ एम जाणवू ॥८॥ सूत्र-१४३ ॥ हवे अनुत्तरोपपातिकदशा नामर्नु नवमुं अंग कहे छे... मू०-से किं तं अणुत्तरोववाइयदसाओ ? अणुत्तरोववाइयदसासु णं अणुत्तरोववाइयाणं lal नगराइं उज्जाणाइं चेइयाई वणखंडा रायाणो अम्मापियरो समोसरणाई धम्मायरिया धम्मकहाओ इहलोगपरलोगइविविसेसा भोगपरिचाया पवजाओ सुयपरिग्गहा तवोवहाणाइं परियागो पडिमाओ संलेहणाओ भत्तपाणपञ्चक्खाणाई पाओवगमणाइं अणुत्तरोववाओ सुकुलपञ्चायाया पुणो । बोहिलाभो अंतकिरियाओ य आघविजंति । अणुत्तरोववाइयदसासु णं तित्थकरसमोसरणाइं पर- ॥२३५॥
SR No.010536
Book TitleAgam 04 Ang 04 Samvayang Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJethalal Haribhai
PublisherJain Dharm Prasarak Sabha
Publication Year1939
Total Pages681
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_samvayang
File Size44 MB
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