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________________ एके- नगर विगेरे चौद पदो छठा अंगना वर्णनमां कह्या ते ज छे, तथा 'पडिमाओ त्ति ' - बार भिक्षुनी प्रतिमा एक मासनी इत्यादि घृणा प्रकारनी छे, तथा क्षमा, मार्दव, आर्जव अने सत्य सहित शौच ( शौच अने सत्य ), तेमां शौच एटले परधननो अपहार करवाथी थती मलिनतानो अभाव, सत्तर प्रकारनो संयम, मैथुननी विरतिरूप उत्तम ब्रह्मचर्य, 'आकिंचणिय त्ति' - अकिंचनपणुं ( परिग्रह रहितपणुं ), तप, त्याग एटले आगममां कहेलुं दान, समिति अने गुप्ति, तथा अप्रमादयोग, उत्तम एवा स्वाध्याय अने ध्यान ए बन्नेनां लक्षण एटले स्वरूप, तेमां 'स्वाध्याय करवाथी प्रशस्त ध्यान थाय छे' ए स्वाध्यायनुं लक्षण छे अने 'एक अंतर्मुहूर्त्त सुधी एक वस्तुने विषे जे चित्तने स्थापन करवुं ते ध्यान कहेवाय छे' ए ध्याननुं लक्षण छे. इत्यादि पदार्थों आ अंगमां व्याख्यान कराय छे ( कहेवाय छे ) एम सर्वत्र संबंध करवो । तथा उत्तम संयमने एटले सर्वविरतिने पामेला तथा जेओए परींषहो जीत्या छे तेओने चार प्रकारना घातिकर्मनो क्षय थये सते जे प्रकारे केवळज्ञाननो लाभ थाय छे, तथा जेटलो एटले जेटला वर्षादिकना प्रमाणवाको प्रव्रज्यारूप पर्याय जे तपोविशेपना आश्रयादिक प्रकारे करीने मुनिओए पाळ्यो होय छे, तथा पादपोपगमन नामना अनशनने पामेला जे मुनि जे स्थान - एटले शत्रुंजय पर्वतादिकने विषे जेटला भक्तने एटले भोजनने छेदीने, केम के अनशनवाळाने हमेशां वे भक्तनो विच्छेद - थाय छे. तेथी तेटला भक्तने छेदीने अज्ञान अने कर्मना समूहथी मूकायेला मुनिवर अंतकृत थया छे, ते प्रकारे सर्वे क्षेत्र - • कालादिकना विशेषणवाळा मुनिओ अनुत्तर मोक्षसुखने पाम्या छे, ते सर्व आ अंगमां कहेवाय छे एम क्रियापदनो संबंध करवो । आ अने बीजा पदार्थो इत्यादिक सूत्रनो अर्थ पूर्वनी जेम करवो. विशेष ए के अहीं जे दश अध्ययनो कह्यां ते
SR No.010536
Book TitleAgam 04 Ang 04 Samvayang Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJethalal Haribhai
PublisherJain Dharm Prasarak Sabha
Publication Year1939
Total Pages681
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_samvayang
File Size44 MB
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