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________________ श्री समवायाङ्ग सूत्र ॥ aji अंग ॥२३० ॥ करनारा जिनेश्वरना शासनने विषे स्थिरताने पाम्या, ते प्रकारे आ अंगमां कहेवाय छे तेम संबंध जाणवो । तथा ' आराहितसंजम त्ति ' -- आथी ज लौकिक मुनिओ अने संयमथी चलायमान थयेला साधुओ जिनवचनने पाम्या सता (पामीने) फरीथी संयमनुं पालन करीने सुरलोकमां जइने त्यारपछी ते सुरलोकथी पाछा आव्या सता जे प्रकारे शाश्वत - सदाकाळ रहेनार अने शिव-बाधा रहित एवा सर्व दुःखना मोक्षने एटले निर्वाणने पामे छे, ते सर्व आ अंगमां कहेवाय छे। आ उपर का ते अने बीजापण एने आदि लइने, अहीं आदि शब्दनो प्रकार अर्थ होवाथी एवा प्रकारना अर्थों एटले पदार्थो विस्तारवडे अने च शब्द छे तेथी कोइक ठेकाणे कोइक पदार्थों संक्षेपे करीने अहीं कहेवाय छे एम क्रियापदनो संबंध करवो । नायाधम्मकहासु णं ' - इत्यादि सूत्र समाप्ति पर्यंत सुगम छे. तेमां विशेष आ प्रमाणे छे-' एकूणची समज्झयण त्ति ' - पहेला श्रुतस्कंधमां ओगणीश अध्ययनो छे, तथा बीजा श्रुतस्कंधमां दश अध्ययनो छे. तथा ' दस धम्मकहाणं वरगा--' आ सूत्रनो भावार्थ आ प्रमाणे छे--अहीं ओगणीश ज्ञाताना अध्ययनो छे. केम के दाष्टांतिक अर्थने जणावनार रूप जे ज्ञात, तेमां तेनुं प्रतिपादन करेलुं छे तेथी ते ओगणीश अध्ययनो पहेला श्रुतस्कंधमां छे अने चीजा श्रुतस्कंधमां तो अहिंसादिक लक्षणवाळा धर्मनी कथा ते धर्मकथा एटले आख्यानको कहेला छे, ए आनो भावार्थ छे. ते धर्मकथाना दश वर्गों छे. अहीं वर्ग एटले समूह एवो अर्थ छे. तेथी करीने अर्थाधिकारना समूहरूप अध्ययनो ज दश वर्गरूप जाणवा. तेमां • ज्ञातने विषे पहेला जे दश अध्ययनो छे ते ज्ञात ज कहेवाय छे. तेमने विपे आख्यायादिकनो संभव नथी. बाकीना नव अध्ययनो छे, तेमां एक एक अध्ययनमां पांच सो चाळीश पांच सो चाळीश आख्यायिका छे. तेमां पण एक एक आख्या ज्ञाता धर्मकथा परिचय ॥ ॥२३०॥
SR No.010536
Book TitleAgam 04 Ang 04 Samvayang Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJethalal Haribhai
PublisherJain Dharm Prasarak Sabha
Publication Year1939
Total Pages681
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_samvayang
File Size44 MB
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