SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 507
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ तेने माटे. ते श्रुतार्थो केवा ? ते कहे छे-'गुणहस्ताः '-अर्थनी प्राप्ति विगेरे रूप जे गुण तेज हस्त जेवो हस्त एटले प्रधान अवयव छे जेमने ते गुणहस्त कहेवाय छ (गुणमहत्था एटले गुणरूपी महा अर्थ)। 'वियाहस्सेत्यादि' अहींथी समाप्ति सुधीन सूत्र सुगम छे. विशेष ए के-अहीं शत (शतक) ए अध्ययननी संज्ञा छे. आ अंगमां कुल चोराशी हजार पदो छे. अहीं समवायांगनी अपेक्षाए वमणी संख्यानो आश्रय करवानो नथी, अन्यथा जो तेने बमणी करीए तो वे लाख ने अठाशी हजारनी संख्या थाय छे. ॥५॥ सूत्र-१४०॥ हवे ज्ञाताधर्मकथा नाम, छठे अंग कहे छे-. ___ मू०--से किं तं णायाधम्मकहाओ ? णायाधम्मकहासु णं णायाणं णगराइं उजाणाइं चेइआई वणखंडा रायाणो ५ अम्मापियरो समोसरणाई धम्मायरिया धम्मकहाओ इहलोइयपरलोइ- I अइड्डीविसेसा १० भोगपरिच्चाया पव्वजाओ सुयपरिग्गहा तवोवहाणाइं परियागा १५ संलेहणाओ भत्तपञ्चक्खाणाइं पाओवगमणाई देवलोगमणाई सुकुलपच्चायायाई २० पुणबोहिलाभा अंतकिरियाओ २२ य आघविज्जति जाव नायाधम्मकहासु णं पव्वइयाणं विणयकरणजिणसामिसासणवरे संजमपइण्णापालणधिइमइववसायदुब्बलाणं १ तवनियमतवोवहाणरणदुद्धरभरभग्गयणि
SR No.010536
Book TitleAgam 04 Ang 04 Samvayang Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJethalal Haribhai
PublisherJain Dharm Prasarak Sabha
Publication Year1939
Total Pages681
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_samvayang
File Size44 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy