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________________ कहेला, वळी केवा ? ते कहे छे-दब्वेत्यादि-विविध प्रकारना द्रव्य, गुण, विगेरेवडे जे व्याकरणोए प्रगट अर्थ देखाडयो छे एवा, तेमां द्रव्य एटले धर्मास्तिकाय विगेरे, गुण एटले ज्ञान, वर्ण विगेरे, क्षेत्र एटले आकाश, काळ एटले समय विगेरे, पर्यव एटले स्व अने पर एवा भेदे करीने जूदा जूदा धर्मों, अथवा काळे करेली नवं, जूनुं विगेरे अवस्थारूप पर्याय, प्रदेश-जेना वे भाग न थाय तेवा अवयवो, परिणाम एटले एक अवस्थाथकी बीजी अवस्थामां जq ते, यथा एटले जे प्रकारे अस्तिपणुं छे ते अस्तित्व एटले सत्ता (होवापणुं) ते यथास्तिभाव कहेवाय छे, अनुगम एटले संहिता (संधि) विगेरे व्याख्यान(अर्थ)नो प्रकार अथवा उद्देश, निर्देश, निर्गम विगेरे द्वारोनो समूह, निक्षेप एटले नाम, स्थापना, द्रव्य अने भाववडे वस्तु (पदार्थ) स्थापवा ते, नयप्रमाण-तेमां नय एटले नैगमादि सात, अथवा द्रव्यास्तिक अने पर्यायास्तिकना भेदथी, अथवा ज्ञाननय अने क्रियानयना भेदथी अथवा निश्चय अने व्यवहारना भेदथी वे छे अर्थात् सात अथवा वे नयरूप. प्रमाण एटले वस्तुतत्त्वनो परिच्छेद ते नयप्रमाण कहेवाय छे, तथा सुनिपुण एटले अति सूक्ष्म अथवा सुनिपुण एटले सारी रीते निश्चित गुणवाळो उपक्रम एटले आनुपूर्वी विगेरे, आ सर्वेनुं विविध प्रकारपणुं तेमना भेदो कहेवाथी ज देखाडयुं छे. तथा केवा प्रकारनां व्याकरणो (उत्तरो) ? ते कहे छे-लोक अने अलोक प्रकाशित छे जेमां एवा, तथा 'संसारसमुद्द' विस्तारवाळा (मोटा) संसारसमुद्रना उतरवामां-तारवामां समर्थ एवा, एज कारण माटे इंद्रोए पूजेला | एटले पूछनार तथा निर्णय करनारनी इंद्रोए पूजा करवाथी अथवा सारूं कहेलु होवाथी श्लाघा करेली होवाथी पूजेला, तथा | भवियजण०-भव्य प्राणीओनी जे प्रजा एटले लोक ते भव्यजनप्रजा कहेवाय छे, अथवा भव्य एवो जनपद, तेमना
SR No.010536
Book TitleAgam 04 Ang 04 Samvayang Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJethalal Haribhai
PublisherJain Dharm Prasarak Sabha
Publication Year1939
Total Pages681
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_samvayang
File Size44 MB
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