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समवायाङ्ग
सूत्र ॥ चो अंग
॥२२४॥
हितने माटे गुणरूपी हाथवाळा कहेवाय छे। आ व्याख्यानी वाचना परित्त ( संख्याती ) छे, अनुयोगद्वार संख्याता छे, "प्रतिपत्तीओ संख्याती छे, वेष्टको संख्याता छे, श्लोको संख्याता छे, निर्युक्ति संख्याती छे. ते आ व्याख्या अंगार्थकपणाए करीने पांच अंग छे. तेमां एक श्रुतस्कंध छे, कांइक अधिक एक सो अध्ययनो छे, दश हजार उद्देशा छे, दश हजार समुद्देशा छे, छत्रीश हजार व्याकरण (उत्तर) छे, चोराशी हजार कुल पद का छे. तेमां संख्याता अक्षरो छे, अनंत गमा छे, अनंत पर्यायो छे, सो असंख्याता छे, स्थावरो अनंता छे, ते सर्वे शाश्वत छे, करेला छे, निबद्ध छे, निकाचित छे, आ सर्व जिनेश्वरोए कहेला पदार्थों कहेवाय छे, प्रज्ञापना कराय छे, प्ररूपणा कराय छे, देखाडाय छे, निदर्शाय छे, उपदर्शाय छे, ते आ प्रमाणे भणनारनो आत्मा तद्रूप थाय छे, ते आ प्रमाणे जाणकार थाय छे, ते आ प्रमाणे विशेष जाणकार थाय छे, आ प्रमाणे चरणकरणनी प्ररूपणा कहैवाय छे. आ प्रमाणे व्याख्या नामनुं अंग में कछु ॥ ५ ॥ सूत्र- १४० ॥
टीकार्थ:--' से किं तं वियाहे इत्यादि ' हवे कइ आ व्याख्या ? जेने विषे अर्थों ( पदार्थों ) व्याख्यान कराय ते व्याख्या कहेवाय छे. सूत्रमां 'वियाहे' एम पुंलिगनो निर्देश कर्यो छे ते प्राकृतने लीधे कर्यो छे. 'वियाहेणं ति ' - व्याख्यावडे अथवा व्याख्याने विषे स्वसमय कहेवाय छे विगरे नव पदो सूत्रकृतांगना वर्णनमां व्याख्यान कर्या छे तेथी सुगम छे. 'वियाहेणमित्यादि ' – विविध प्रकारना देवोए, नरेंद्रीए अने राजर्षिओए विविहसंसय त्ति ' विविध प्रकारना संशय करनाराओए पूछेला एवा व्याकरणो छत्रीश हजार जोवाथी श्रुतार्थो व्याख्यान कराय छे एम पूर्वापर वाक्यनो संबंध करवो. ते व्याकरणो केवां छे ? ते कहे छे -- भगवान महावीरस्वामीए विस्तारथी
व्याख्या
प्रज्ञप्ति परिचय |
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