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समवायाङ्ग सूत्र ॥
चो अंग
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यनो छे, पंचाशी उद्देशन काळ छे, पंचाशी समुद्देशन काळ छे, कुल पदोवडे करीने तेना अठार हजार पदो छे, अक्षरो संख्याता छे, गमा अनंता छे, पर्यवो अनंता छे, नसो परिमित ( असंख्याता ) छे, स्थावरो अनंता छे, (वळी आ उपर कहेला सर्वे ) शाश्वता छे, करेला छे, निबद्ध छे, निकाचित छे. आ सर्वे जिनेश्वरे कहेला भावो ( आ आचारांगने विषे ) कवाय छे, प्रज्ञापना कराय छे, प्ररूपणा कराय छे, देखाडाय छे, निदर्शन कराय छे, उपदर्शन कराय छे। आ प्रमाणे भणीने मनुष्य ज्ञाता थाय छे अने आ प्रमाणे विशेष ज्ञाता थाय छे. आ प्रमाणे आ आचारांगमां चरणकरणनी प्ररूपणा . कहेवाय छे, प्रज्ञापना कराय छे, प्ररूपणा कराय छे, देखाडाय छे, निदर्शन कराय छे, उपदर्शन कराय छे। ते आ आचार वस्तु कही || सूत्र - १३६ ॥
टीकार्थ:--' दुवाललंगे इत्यादि ' अथवा उपर ( प्रथम आखा ग्रंथमां ) उत्तरोत्तर संख्याना अनुक्रमे संबंधवाळा पदार्थोनी प्ररूपणा करी - हवे मात्र संख्याना संबंधवाळा पदार्थोनी प्ररूपणा करवा माटे आरंभ करे छे - 'दुवालसँगे इत्यादि'मां श्रुतरूपी उत्तम पुरुषना अंगनी जेवा अंग. ते बार अंग आचारांग विगेरे जेने विषे छे ते द्वादशांग कहेवाय छे . (बहुव्रीहि समास ). गण छे जेने ते गणी एटले आचार्य, तेनी जे पेटीना जेवी पेटी एटले सर्वस्व राखवानुं भाजन ते गणिपिटक कहेवाय छे. अथवा गणि शब्द परिच्छेदने कहेनार छे. ते विषे कधुं छे के "आचारांग भणवाथी साधुधर्म जेथी करीने जाणवामां आवे छे, तेथी करीने आचारांगने धारण करनार साधु पहेलुं गणिस्थान कहेवाय छे. " अर्थात् परिच्छेद स्थान कहेवाय छे. तेथी करीने परिच्छेदनो जे पिटक -समूह ते गणिपिटक कहेवाय छे. अहीं पदनी घटना आ प्रमाणे
आचारांग परिचय |
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