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________________ पज्जवा, परित्ता तसा, अनंता थावरा, सासया कडा निबद्धा णिकाइया जिणपण्णत्ता भावा आघविनंति पण्णविज्जंति परुविज्जति दंसिजंति निदंसिजति उवदंसिजंति । से एवं णाया एवं विष्णाया । एवं चरणकरणपरूवणया आघविज्जति पण्णविज्जंति परुविज्जंति दंसिजंति निदंसिजति उवदंसि - जंति । सेतं आयारे ॥ १ ॥ सूत्रम् - - १३६ ॥ मूलार्थ:- बार अंग गणिपिटक कला छे, ते आ प्रमाणे - आचार १, सूत्रकृत २, स्थान ३, समवाय ४, विवाहप्रज्ञप्ति ५, ज्ञाताधर्मकथा ६, उपासकदशा ७, अंतकृतदशा ८, अनुत्तरोपपातिकदशा ९, प्रश्नव्याकरण १०, विपाकश्रुत ११ अष्टवाद १२ | हवे ते आचारांग कयुं ? आचारांगने विषे श्रमण निर्मथनो आचार १, गोचर २, विनय ३, वैनयिक ४, स्थान ५, गमन ६, चंक्रमण ७, प्रमाण ८, योगयुंजन ९, भाषा १०, समिति १९ अने गुप्ति १२ कहेवाय छे, तथा शय्या १, उपधि २, भक्त ३ अने पान ४ ए चारनुं उद्गम, उत्पादन अने एषणानी विशुद्धिए करीने शुद्ध होय तेनुं अथवा कारणे अशुद्धनुं ग्रहण कहेवाय छे, तथा व्रत १, नियम २ अने तपउपधान ३, आ सर्वे (१९) सुप्रशस्त कहेवाय छे । ते आचार संक्षेपथी पांच प्रकारे कह्यो छे, ते आ प्रमाणे- ज्ञानाचार १, दर्शनाचार २, चारित्राचार ३, तपाचार ४ अने वीर्याचार ५ । आ आचारांगनी वाचना परिमित छे, अनुयोगद्वार संख्याता छे, प्रतिपत्तिओ संख्याती छे, वेष्टक संख्याता छे, श्लोक संख्याता छे, नियुक्ति संख्याती छे । ते आचारांग अंगार्थकपणाए करीने पहेलुं अंग छे, तेना वे श्रुतस्कंध छे, पंचीश अध्य ३६
SR No.010536
Book TitleAgam 04 Ang 04 Samvayang Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJethalal Haribhai
PublisherJain Dharm Prasarak Sabha
Publication Year1939
Total Pages681
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_samvayang
File Size44 MB
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