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समवाय
की समवायाङ्ग . सूत्र ॥ चोयुं अंग
॥२०३॥ &
कहेलु छे (२)। एज प्रमाणे नीलवंत कूटनु पण कहेQ (३)। विमलवाहन नामना कुलकर नव सो धनुप ऊंचा हता (४) आ रत्नप्रभाना बहु समान रमणीय भूमिभागथकी नव सो योजन ऊंचे सर्वथी उपरना तारा चार चरे छे (५)। निषध नामना वर्षधर पर्वतना उपला शिखरतळ थकी आ रत्नप्रभा पृथ्वीना पहेला कांडना बहु मध्य देशभाग सुधी नव सो योजन- अबाधाए आंतरूं कहेलं छे (६) । एज प्रमाणे नीलवंतनुं पण कहेवू (७) ॥ ९०० ॥
टीकार्थ:-निसहकूडस्स णमित्यादि'-अहीं आ भावार्थ छ-निपध पर्वतपरना कूट पांच सो योजन ऊंचा छे अने निषध पर्वत चार सो योजन ऊंचो छे. तेथी सूत्रमा कहेलुं नव सो योजननु आंतरं थाय छे (२)॥९००||सूत्र-११२॥ हवे हजारमुं स्थान कहे छे
मू-सव्वे वि णं गेवेजविमाणे दस दस जोयणसयाई उई उच्चत्तेणं पन्नत्ते ।। सव्वे विणं जमगपव्वया दस दस जोयणसयाइं उड्डूं उच्चत्तेणं पन्नत्ता, दस दस गाउयसयाइं उव्वेहेणं पन्नत्ता, मूले दस दस जोयणसयाइं आयामविक्खंभेणं पन्नत्ता।। एवं चित्तविचित्तकूडा वि भाणियव्वा ॥३॥ सव्वे विणं वटवेयड्पव्वयादस दस जोयणसयाइं उर्दू उच्चत्तेणं पन्नत्ता, दस दस गाउयसयाइं उव्वेहेणं पन्नत्ता मूले दस दस जोयणसयाइं विक्खंभेणं पन्नत्ता, सव्वत्थ समा पल्लगसंठाणसंठिया पन्नत्ता ।४।
१. एमां पर्वतनी ऊंचाइ ४०० योजन अने रत्नप्रभाना प्रथम कांडना मध्य सुधी ५०० योजन एम ९०० योजन समजवा.
కారతనార్య నాగార శాకుగా నాకు ఆ కు
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