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'समवायाङ्ग सूत्र ॥
चो अंग
॥१९५।।
योजननुं युं छे. ( ६ ) | आ रत्नप्रभा पृथ्वीना अंजन नामना कांडनी नीचेना चरमांतथी वाणव्यंतरना भूमिगृहनी उपरना • छेडा सुधी नवाणु सो योजननुं अबाधाए आंतरुं कहेलुं छे ( ७ ) ॥
टीकार्थ:- हवे नवाणुमा स्थान विषे कांइक लखे छे-' नंदणवणेत्यादि ' - आनो भावार्थ आ प्रमाणे छे- मेरु पर्वतो विष्कंभ मूळमां दश हजार योजननो छे, अने नंदनवनने स्थाने तो नवाणु सो ने चोपन योजन तथा उपर एक योजना अग्यारीया छ भाग ( ९९५४६ ) एटलो पर्वतनो बाह्य विष्कंभ छे, तथा नंदनवननी अंदरनो मेरुविष्कंभ तो नेवाशी सो ने चोपन तथा उपर अग्यारीया छ भाग ( ८९५४, १ ) जेटलो छे. तथा नंदन वननो विष्कंभ पांच सो योजननो छे. आ ते होवाथी आभ्यंतर गिरिनो विष्कंभ अने बमणो करेलो नंदन वननो विष्कंभ मेळववाथी कहेलं आंत प्राये करीने थाय छे (२) । ' पढमसूरियमंडले त्ति - अहीं एक सो ने एंशीने बमणा करी (३६०) तेने जंबूद्वीपना प्रमाणमथी (१००००० मांथी ) वाद करी जे राशि रहे, ते पहेला मंडळनो आयामविष्कंभ थाय छे. ते नवाणु हजार, छ सो ने चाळीश (९९६४०) थाय छे (४) । बीजुं मंडळ ( आयामविष्कंभवडे ) नवाणु हजार छ सो ने पीस्ताळीश योजन तथा एक योजना एकसठीया पांत्रीश भागनुं ( ९९६४५३ ) थाय छे, शी रीते ? ते कहे छे दरेक मांडलानुं अंतरं वे वे योजननुं छे, अने सूर्यना विमाननो विष्कंभ एकसठीया अडताळीश भागनो छे, तेने बमणा करवाथी पांच योजन अने एकसठीया पांत्रीश भाग आवे छे, तेने पूर्व मंडळना विष्कंभमां नांखवाथी कहेलं प्रमाण आवे छे (५) । त्रीजा मंडळनो विष्कंभ पण एज प्रमाणे जाणवो. ते नवाणु हजार, छ सो ने एकावन योजन तथा एकसठीया नव भाग
समवाय ९९ ॥
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