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अहीं कह्या छे, पण आवश्यक सूत्रमा तो अजितनाथना पंचाणु अने शांतिनाथना छत्रीश गण अने गणधरो कह्या छे ते मतांतर जाणवु (२-३)। तथा स्वयंभू नामना त्रीजा वासुदेवने नेवु वर्ष सुधी विजय एटले पृथ्वीने साधवानो व्यापार हतो (४)। 'सव्वेसि णमित्यादि'-सर्वे एटले शब्दापाती विगेरे वीशे वृत्तवैताढ्यो एक हजार योजन ऊंचा छे, तथा सौगंधिक कांडनो चरमांत आठ हजार योजन प्रमाण छे, तेथी नव हजार एटले नेवु सो योजननु आंतरुं सूत्रमा का छे ते बराबर छ (५)॥ सूत्र--९०॥
हवे एकाणुएं स्थानक कहे छे-- ___मू-एकाणउई परवेयावच्चकम्मपडिमाओ पन्नत्ताओ। १ । कालोए णं समुद्दे एकाणउई जोयणसयसहस्साइं सहियाइं परिक्खेवेणं पन्नत्ते । २ । कुंथुस्स णं अरहओ एकाणउई आहोहियसया होत्था । ३ । आउयगोयवजाणं छण्हं कम्मपगडीणं एकाणउई उत्तरपगडीओ पन्नत्ताओ । ४॥ सूत्रम्-९१ ॥
मूलार्थ:-वीजानुं वैयावृत्त्य कर्म करवानी प्रतिमाओ एकाणु कही छे (१)। कालोद समदनी परिधि कांइक अधिक एकाणु लाख योजन प्रमाण कही छे (२)। कुंथुनाथ अरिहंतने एकाणु सो अवधिज्ञानीओनी संपदा हती।३। आयु अने गोत्र ए वे कर्म विना बाकीनी छ मूल कर्मप्रकृतिनी एकाणु उत्तर प्रकृतिओ कही छे (४)॥. . ...