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समवाय ८६ ॥
श्री
ऊंचा छे, तेथी कुल पंचाशी हजार योजन थाय छे. तथा पुष्कराधना बन्ने मेरु पण ए ज रीते समजवा. विशेष ए केसमवायाङ्ग सूत्रनी गतिनुं विचित्रपणु होवाथी ते सूत्रमा कह्या नथी (२) । तथा रुचक एटले रुचक नामनो तेरमा द्वीपनी अंदर रहेलो
पत्र ॥ प्राकारनी जेवी आकृतिवाळो रुचकद्वीपना वे विभाग करनारो रुचक नामनो पर्वत छे, ते मंडळाकारे रहेलो होवाथी मंडलिक _ चोथु अंग पर्वत कहेवाय छे. ते एक हजार योजन पृथ्वीमां अवगाढ छे अने चोराशी हजार योजन ऊंचो छ, तेथी कुल पंचाशी
G हजार योजन थाय छै (३) तथा मेरुपर्वतनी पांच सो योजन ऊंची पहेली मेखळामा रहेला नंदन वनना भूमितळना ॥१८२॥
चरमांत थकी सौगंधिककांड एटले रत्नप्रभा पृथ्वीना खरकांड नामना पहेला कांडना अवांतरभूत सौगंधिक जातिना रत्नमय सौगंधिक नामना आठमा कांडनी नीचेनो चरमांत पंचाशी सो योजन आंतराने आश्रीने रहेलो छे. केवी रीते ? ते कहे छे-पांच सो योजन मेरु संबंधी तथा (तेनी नीचे) दरेक कांड हजार हजार योजनना प्रमाणवाळा होवाथी आठमो कांड एंशी सो योजन दूर छे, तेथी कुल पंचाशी सो योजन- आंतरुं छे (४) ॥ सूत्र-८५॥
हवे छाशीमुं स्थान कहे छे.. मू०-सुविहिस्स णं पुप्फदंतस्स अरहओ छलसीइ गणा छलसीइ गणहरा होत्था।१।सुपासस्स कणं अरहओ छलसीइ वाइसया होत्था ।२। दोच्चाए णं पुढवीए बहुमज्झदेसभागाओ दोच्चस्स घणोKo दहिस्स हेट्ठिल्ले चरमंते एस णं छलसीइ जोयणसहस्साइं अबाहाए अंतरे पन्नत्ते ।३।।सूत्रम्-८६॥
॥१८२॥