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| तेर भाग ओछा करे छे अने वधारे छे. ते ज प्रमाणे दक्षिणायनथी पाछो फरेलो सूर्य तेटला ज भाग ओछा करे छे अने वधारे छे. मात्र फेर ए छे के-दक्षिणायनथी पाछो फरतां दिवसना भागने ओछा करे छे अने रात्रिना: भागने वधारे छे, अने उत्तरायणथी पाछो फरतां दिवसना भागने वधारे छे अने रात्रिना भागने ओछा करे छे (४) ॥ सूत्र-७८ ।। हवे ओगणाएंशी, स्थान कहे छ
मू-वलयामुहस्स णं पायालस्स हिट्ठिल्लाओ चरमंताओ इमीसे णं रयणप्पभाए पुढवीए हेडिल्ले चरमंते एस णं एगूणासिं जोयणसहस्साइं अबाहाए अंतरे पन्नत्ते ।। १ । एवं केउस्स वि जूयस्स वि ईसरस्स वि । २ । छट्ठीए पुढवीए बहुमज्झदेसभायाओ छट्ठस्स घणोदहिस्स हेढिल्ले चरमंते एस णं एगूणासीति जोयणसहस्साइं अबाहाए अंतरे पन्नत्ते । ३ । जंबुद्दीवस्स णं दीवस्स बारस्स य बारस्स य एस णं एगूणासीइं जोयणसहस्साइं साइरेगाइं अबाहाए अंतरे पन्नत्ते ।४। ॥ सूत्रम्-७९॥ _ मूलार्थ:-वडवामुख नामना पातालकळशना नीचेना छेडाना अंतथी आ रत्नप्रभा पृथ्वीना नीचेना छेडाना अंत सुधीमां
ओगणएंशी हजार योजन- अबाधाए आंतरं कर्तुं छे (१) । ए ज प्रमाणे केतु, यूप अने ईश्वर नामना पाताळ कळशनुं. पण आंतरं जाणवु (२)। छठी नरकपृथ्वीना बहुमध्यदेश भागथी छठा घनोदधिना नीचेना चरमांत सुधीमां ओगण