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श्री
विषयानु
समवायाङ्ग
गोधु अंग
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ఆకులు
परिवार छे, एक एक मुहूर्त सत्तोतेर लवप्रमाण कह्यो छे. । पृथ्वीना मध्यभागथी छठ्ठा घनोदधिना नीचला छेडा सुधीमां
' (७८) शकेंद्रनो वैश्रमण नामनो लोकपाळ सुवर्ण- ओगणएंशी हजार योजन- आंतरं छे, आ जंबूद्वीपना दरेक कुमार अने द्वीपकुमारना अठोतेर लाख आवासनो अधि- द्वारन आंतरूं साधिक ओगणाएंशी हजार योजननुं छे ( आनी पति छ अर्थात् ते वे निकाय तेना ताबानी छे, अकंपित स्पष्टता टीकाकारे करेली छे ). नामना स्थविर अठोतेर वर्पनुं आयुष्य पाळीने सिद्ध थया, (८०) श्रीश्रेयांस प्रभु एंशी धनुप ऊंचा हता, उत्तरायणथी पाछो फरेलो सूर्य पहेला मंडळथी ओगणचाळी- त्रिपृष्ठ वासुदेव अने अचळ नामना बळदेव पण पंशी धनुप शमा मंडळ सुधीमा एक मुहूर्त्तना अठ्ठोतेर भाग प्रमाण दिव- ऊंचा हता, त्रिपृष्ठ वासुदेव एंशी लाख वर्ष सुधी महाराजासने हानि पमाडीने तथा तेटली ज रात्रिमा वृद्धि करीने पणे रहा हता, रत्नप्रभा पृथ्वीनो अब्बहुल कांड एंशी हजार चाले छे, ए ज प्रमाणे दक्षिणायनथी पाछो फरेलो सूर्य तेटलो योजन जाडो छे, ईशानेंद्रने एंशी हजार सामानिक देवो छे, ज दिवसने घटाडे छे अने रात्रिने वृद्धि पमाडे छे.
आ जंबूद्वीपनी अंदर एक सो ने एंशी योजन आवीने उत्तर (७९) वडवामुख नामना पाताळकळशना नीचेना दिशामां सूर्य प्रथम उदय पामे छे. छेडाथी रत्नप्रभा पृथ्वीना नीचेना छेडा सुधी ओगण- | (८१) नव नवमिका नामनी भिक्षुप्रतिमा एकाशी ऐंशी हजार योजन- आंतरं छे, एज प्रमाणे केतु, यूप दिवसे पूर्ण थाय छे, श्रीकुंथुनाथ प्रभुने एकाशी सो मन:अने ईश्वर नामना पातालकळशनुं आंतरं जाणवू, छठ्ठी नरक । पर्यवज्ञानी हता, विवाहप्रज्ञप्तिमा एकाशी अध्ययनो कयां छे.