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________________ समवाय ७२॥ श्री., समवायाङ्ग स्त्र ॥ चोयूं अंग ॥१६॥ कोतर, परोव, वणवं, छेदवं, मेदवं, वाळवू अने संक्रामद् (बीजा पदार्थ- मेळवq) आ विगेरे करवाथी (लखवा, कोतवा विगेरेथी) अक्षरो थाय छे. तथा विपयनी अपेक्षाए पण अनेक प्रकारे लेखन थइ शके छे केम के स्वामी-भृत्य, पितापुत्र, गुरु-शिष्य, भार्या-पति, शत्रु-मित्र विगेरे लेखना विषयो अनेक छे. तेम ज ते स्वामी विगेरेना तथाप्रकारना कार्यों पण अनेक प्रकारना छे, तेथी अनेक प्रकार थइ शके छे. आ अक्षर पण दोप रहित लखवा जोइए, तेथी तेना दोष आ प्रमाणे कह्या छ-"अति झीणापणुं, अति मोटापणुं, विषमपणुं, लींटीनुं वांकापणुं, असमानतुं सदृशपणुं (जेमके-'प' ने बदले 'य' लखवो विगेरे) तथा अवयवोनो विभाग न पाडवो ते (अक्षरोना विभाग माथां विगेरे जुदा लखीने न पाडवो ते वरवर्णिका' ने बदले विखर्णिका') १, तथा गणित एटले संख्या, ते गणित संकलित विगेरे अनेक प्रकारचं पाटीने विष प्रसिद्ध छे २, रूप्य-लेप्य, शिला, सुवर्ण, मणि, वस्त्र अने चित्र विगेरेने विपे रूप बनावबुं (प्रतिमादिक बनाववानी कळा )३, नाट्य कळा-भरत, मार्ग, छलिक अने लास्यविधान विगेरेना भेदवडे आठ प्रकारचं नाट्य ग्रहण करवाथी नृत्यकळा पण ग्रहण करी छे एम जाणवू. ते नृत्यकळा त्रण प्रकारे छे-अभिनयिका, अंगहारिका अने व्यायामिका-आ सर्वनुं स्वरूप भारतनाटयशास्त्रथी जाणवू ४, तथा गीतकळा त्रण प्रकारनी छे-निबंधमार्ग, छलिकमार्ग अने भिन्नमार्ग, तेमां " सात स्वर, त्रण ग्राम, एकवीश मूर्छना अने ओगणपचास तान छे. ए प्रमाणे स्वरमंडळ समाप्त थयु." आ कळा विशाखिल नामना शास्त्रमाथी जाणवी ५, 'वाइयं ति'-वाद्यकळा. आ कळा चार प्रकारनुं तत, पांच प्रका १. गरम करेली वस्तुने काष्ठपर फेरवी अक्षर पाडवा. तेमा काष्ट बळे छे ने अक्षर पडे छे. ॥१६॥
SR No.010536
Book TitleAgam 04 Ang 04 Samvayang Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJethalal Haribhai
PublisherJain Dharm Prasarak Sabha
Publication Year1939
Total Pages681
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_samvayang
File Size44 MB
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