________________
श्रीका
समवाय, ६४॥
॥१५६॥
भवंति । २ । निसढे णं पवए तेवदि सूरोदया पन्नत्ता ।३। एवं नीलवंते वि । ४॥ सूत्रम्-६३॥ समवायाजा
मूलार्थः-श्री ऋषभदेव अरिहंत त्रेसठ लाख पूर्व सुधी महाराज्यमा बसीने पछी मुंड थइ अगार( गृहवास )थकी सूत्र॥ अनगारपणे (साधुपणे ) प्रव्रजित थया (१)। हरिवर्ष अने रम्यक क्षेत्रने विषे (युगलिक ) मनुष्यो वेसठे रात्रिदिवसे चो, अंग यौवन वयने प्राप्त थाय छे (२) । निषध पर्वत उपर त्रेसठ सूर्योदय (सूर्यना मंडळ ) कहेला छे (३) । एज प्रमाणे नील
चंत पर्वत उपर पण वेसठ सूर्यना मंडळ कहेला छे (४)॥ | टीकार्थ-हवे त्रेसठसुं स्थान कहे छ-'संपत्तजोवण त्ति'-संप्राप्त यौवनवाळा एटले माता-पितानी पालनानी
अपेक्षा विनाना होय छे (२) । निसहेणं त्ति'-सूर्यना कुल एक सो ने चोराशी मंडळ छे, तेमांथी जंबूद्वीपने छेडेथी अंदर एक सो ने एंशी योजनमां पांसठ मंडळ छे. तेमां निषध नामना वर्षधर पर्वत उपर तथा नीलवंत नामना वर्षधर पर्वत उपर त्रेसठ सूर्यना उदयना स्थानो एटले सूर्यना मंडळो कहेला छे, तेमांना बाकीना वे मंडळ जगती उपर रहेला छे अने बाकीना (११९) मंडळ लवणसमुद्र उपर त्रण सो ने त्रीश योजन सुधीमा रहेला छे (३-४) ॥ सूत्र-६३ ॥ हवे चोसठमुं स्थान कहे छे
मू-अट्ठट्ठमिया णं भिक्खुपडिमा चउसट्ठीए राइदिएहिं दोहि य अट्ठासीएहिं भिक्खास१ लोकप्रकाशादिमां ६४ दिवसो कह्या छे.
RADIATRIMARim
॥१५६॥