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________________ श्री समवायाङ्ग पूत्र ॥ चो अंग ॥१४९॥ मुक्त थया, अंत करनार थया, परिनिर्वृत थया अने सर्व दुःखथी रहित थया एम जाणवुं ( ४ ) । 'पढमेत्यादि' पहेली पृथ्वी लाख नरकावासा छे, अने बीजी पृथ्वीमां पचीश लाख छे, ते बन्ने मळीने पंचावन लाख थाय छे (५) । ' दंसणेत्यादि ' - दर्शनावरणीयनी नव उत्तरप्रकृतिओ छे, नामकर्मनी वेताळीश अने आयुष्यनी चार, ए सर्व मळीने पंचावन थाय छे ( ६ ) ।। सूत्र - ५५ ॥ हवे छप्पनमुं स्थान कहे छे मू० - जंबूद्दीवे णं दीवे छप्पन्नं नक्खत्ता चंद्रेण सद्धिं जोगं जोइंसु वा जोइंति वा जोइस्संति वा । १ । विमलस्स णं अरहओ छप्पन्नं गणा छप्पन्नं गणहरा होत्था । २ ॥ सूत्रम् - ५६ ॥ मूलार्थ:-- जंबुद्वीप नामना द्वीपमां छप्पन नक्षत्रो चंद्रनी साथै योगने पाम्या हता, योगने पामे छे अने योगने पामशे ( १ ) | श्री विमळनाथ नामना अरिहंतने छप्पन गणो अने छप्पन गणधरो हता ( २ ) ॥ टीकार्थः - हवे छप्पनमा स्थानकमां लखे छे जंबूद्वीपने विषे वे चंद्र छे, ते दरेकने अठ्ठावीस नक्षत्रो होवाथी वे चंद्रना मळीने छप्पन नक्षत्रो थाय छे (१) । अहीं विमळनाथना छप्पन गणो अने गणधरो कला छे अने आवश्यक सूत्रमां . तो सत्तावन का छे तेथी आ मतांतर जाणवुं. ( २ ) ॥ सूत्र- ५६ ॥ हवे सत्तावन स्थान कहे छे समवाय ५६ ॥ ॥१४९॥
SR No.010536
Book TitleAgam 04 Ang 04 Samvayang Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJethalal Haribhai
PublisherJain Dharm Prasarak Sabha
Publication Year1939
Total Pages681
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_samvayang
File Size44 MB
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