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टीकार्थः – पंचावनमा स्थानकमां आ प्रमाणे लखे छे - अहीं मेरु पर्वतना पश्चिम तरफना छेडाथी जंबूद्वीपना पूर्व दिशाना द्वारनो पश्चिम छेड़ो पंचावन हजार योजन प्रमाण छे एम: पहेलां कयुं छे. तेमां मेरुना विष्कंभना मध्यभागथी पचास हजार योजन जइए त्यां जंबूद्वीपनो छेडो होय छे, केमके ते द्वीप लाख योजनना प्रमाणवाळो छे तेथी; तथा मेरुनो विष्कंभ दश हजार योजननो छे तेथी द्वीपना अर्धमां (पचासमां ) पांच हजार नांखवाथी पंचावन हजार ज थाय छे. जो के अहीं विजय द्वारनो पश्चिम छेड़ो कह्यो छे तो पण जगतीनो पूर्व छेडो समजवो एम संभवे छे, केम के मेरुना मध्यभागथी • जगतीना छेडा सुधीनुं प्रमाण पचास हजार योजन संपूर्ण थाय छे अने जंबूद्दीपनी जगतीना विष्कंभ सहित जंबूद्वीपना लाख योजन पूर्ण थाय छे, ते ज प्रमाणे लवण समुद्रनी जगतीना विष्कंभ सहित लवण समुद्रनुं प्रमाण वे लाखनुं संपूर्ण थाय छे. अन्यथा जो द्वीप अने समुद्रना प्रमाणथी जूटुं जगतीनुं प्रमाण गणवामां आवे तो मनुष्यक्षेत्रनी परिधि कही छे तेथी वारे थवी जोइए, केमके ते परिधि तो पीस्ताळीश लाख योजन प्रमाणवाळा क्षेत्रनी अपेक्षाए ज कहेवामां आवे छे. तेना करतां वधी जवी जोइए; अथवा तो अहीं कांइक न्यून छतां संपूर्ण पंचावननी संख्या कहेवाने इच्छी छे एम जाणवुं (२) । ' अंतिमरायंसि त्ति ' - सर्व आयुष्यना काळनी छेल्ली रात्रिए रात्रिना छेल्ला भागे ( पहोरे ) पापा नामनी मध्यमा नगरीमा हस्तिपाळ राजानी: कार्यसभामां कार्तिक मासनी अमावास्याए स्वाति नक्षत्रमां चंद्र रहे सते नाग नामनुं करण: सते- प्रातःकाळे पर्यकासने बेठेला भगवान पंचावनः अध्ययनो कल्याणना एटले पुण्यकर्मना फळने - कार्यने प्रगट करनारा. अने एजः प्रमाणे पाप फळने प्रगट करनारा ( पंचावन अध्ययनो ) ने कहीने सिद्ध थया, बुद्ध थया, 'यावत्' शब्द होवाथी