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M नरकावास पीस्ताळीश लाख योजन आयामविष्कंभवडे कह्यो छे (२)। एज प्रमाणे उड नामनुं विमान (प्रथम देवलोकन
पहेला प्रतरतुं मध्य विमान) पण कहेवू (३)। ईषत्प्राग्भार नामनी पृथ्वी पण एज प्रमाणे कहेवी (४)। धर्मनाथ अरिहंत ऊंचाइमां पीस्तालीश धनुष उंचा हता (५) । मेरुपर्वतनी चारे दिशामां पीस्ताळीश पीस्ताळीश हजार योजन- अवाधाए आंतरं कर्तुं छे (६)। सर्वे दोढ क्षेत्रवाळा नक्षत्रो पीस्ताळीश मुहूर्त सुधी चंद्रनी साथे योगने पामता हता, पामे छे अने पामशे. ते नक्षत्रो आ छे-"त्रण उत्तरा, पुनर्वसु, रोहिणी अने विशाखा-आ छ नक्षत्रो पीस्ताळीश मुहूर्त्तना संयोगवाळा छे." (७) महालिकाविमानप्रविभक्तिना पांचमा वर्गमां पीस्ताळीश उद्देशन काळ कहेला छे (८)॥
. टीकार्थः-पीस्ताळीशमा स्थानकमां आ प्रमाणे लखे छे-समयक्षेत्र एटले काळवडे करीने जणातुं क्षेत्र, अर्थात् मनुष्यक्षेत्र ( अढी द्वीप) (१)। सीमंतक एटले पहेली नरकपृथ्वीना पहेला पाथडाना मध्यभागमा रहेलो जे गोळ नरकेंद्र छे ते सीमंतक नामनो छ (२)। 'उडुविमाणे त्ति'-सौधर्म अने ईशान देवलोकना पहेला पाथडामा रहेल चारे विमाननी आवलिका( श्रेणि )ना मध्य भागमा रहेल गोळ उडु विमान नामर्नु विमानकेंद्रक छे (३)। 'ईसिपम्भार त्ति'-सिद्धनी पृथ्वी (शिला)(४)। 'मंदरस्सणं पव्वयस्स' ए सूत्रमा लवणसमुद्रना आभ्यंतर परिधिनी अपेक्षाए आंतरूं जाणवू (मेरुपर्वतथी चारे दिशाए ४५०००-४५००० योजन जंबूद्वीपनी जगती छे त्यारपछी लवण समुद्र छे.) | (६) सब्वे वि णमित्यादि'---चंद्रने त्रीश मुहूर्त सुधी भोगववा लायक जे नक्षत्रनुं क्षेत्र, ते समक्षेत्र कहेवाय छे. तेज अर्ध सहित होय ते व्यर्धक्षेत्र कहेवाय छे, केम के जेमां बीजुं अर्ध होय ते व्यर्ध एवी व्युत्पत्ति थाय छे तेथी आवा प्रकारचें।
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