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श्री
समवाय ४४॥
समवायाङ्ग
सूत्र ॥ -चोy अंग
॥१३९॥
अग्यारमा अने बीजा अंगमा मळीने संभवे 'छे (१)। 'जंबूद्दीवस्स णमित्यादि' जंबूद्वीपनी पूर्व दिशाना अंतथी गोस्तूभ पर्वत बेंताळीश हजार योजन (दूर ) छे अने ते(पर्वत)नो विष्कंभ एक हजार योजन तथा बावीश योजन जे अधिक छे तेनी विवक्षा न करवाथी कुल तेताळीश हजार थाय छे (३)।' एवं चउद्दिसि पित्ति'--अहीं उपर कहेली (पूर्व) दिशानो आमां अंतर्भाव (समावेश) होवाथी चार दिशाओ कही छे. एम न होय तो 'एवं तिदिसि पि' एम कहेवू जोइए. तेमां आ प्रमाणे आलावो कहेवो-"जंबुद्दीवस्स णं दीवस्स दाहिणिल्लाओ चरिमंताओ दओभासस्स णं आवासपव्वयस्स दाहिणिल्ले चरिमंते एस णं तेयालीसं जोयणसहस्साई अवाहाए अंतरे पन्नत्ते" (जंबूद्वीप नामना द्वीपनी दक्षिण दिशाना अंतथी दकभास नामना आवासपर्वतना दक्षिण छेडा सुधी तेंताळीश हजार योजननुं अबाधाए आंतरं कयुं छे), एज प्रमाणे बीजा के सूत्र कहेवा. तेमां विशेष ए के-पश्चिम दिशामां शंख अने उत्तर दिशामां दकसीम नामना आवासपर्वत जाणवा (४) ॥ सूत्र-४३ ॥ .. हवे चुमाळीशमुं स्थान कहे छे.--
· मू०-चोयालीसं अज्झयणा इसिभासिया दियलोगचुयाभासिया पन्नत्ता । १। विमलस्स IN णं अरहओ णं चउआलीसं पुरिसजुगाई अणुपिटिं सिद्धाइं जाव प्पहीणाई । २। धरणस्स णं . १. विपाकसूत्रना तो २० अध्ययनो ज छे.
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