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श्री
समवाय ३९॥
चउत्थपंचमछटुसत्तमासु णं पंचसु पुढवीसु एगूणचत्तालीसं निरयावाससयसहस्सा पन्नत्ता । ३।। समवायाज
नाणावरणिज्जस्स मोहणिजस्स गोत्तस्स आउयस्स एयासि णं चउण्हं कम्मपगडीणं एगूणचत्तार॥
लीसं उत्तरपगडीओ पन्नत्ताओ।४॥ सूत्रम्-३९॥ चोधु अंग
मूलार्थः-एकवीशमा नमिनाथ अरिहंतने ओगणचाळीश सो ३९०० अवधिज्ञानीओ हता (१)। समयक्षेत्रने विषे ॥१३४॥
(अढी द्वीपने विषे) ओगणचाळीश कुळपर्वतो कह्या छे. ते आ प्रमाणे-त्रीश वर्षधर पर्वतो, पांच मेरुपर्वतो अने चार इषुकार पर्वतो (२)। बीजी, चोथी, पांचमी, छठी अने सातमी आ पांच पृथ्वीने विषे ( मळीने कुल ) ओगणचालीश लाख नरकावासा कहेला छे (३) । ज्ञानावरणीय, मोहनीय, गोत्र अने आयु आ चारे मूळ कर्मप्रकृतिनी उत्तरप्रकृतिओ ओगणचाळीश कहेली छे (४)।
टीकार्थ:-ओगणचाळीशमुं स्थान प्रगट ज छे. विशेष एके-'आहोहिय त्ति' नियमित (अमुक) क्षेत्रना V विषयवाळा अवधिज्ञानीओ, तेओनी संख्या ओगणचाळीश सेंकडा ३९०० (१)। कुलपव्वय त्ति' क्षेत्रनी मर्यादा
करनार होवाथी कुळनी जेवा जे पर्वतो ते कुळपर्वतो कहेवाय छे, कारण के कुळो जे ते लोकोनी मर्यादाना कारणरूप होय पछे, तेथी अहीं तेने कुळनी उपमा आपी छे. तेमां त्रीश वर्षधर पर्वतो आ प्रमाणे छे-जंबूद्वीपने विपे (६) धातकीखंडना
पूर्वदिशाना अर्धभागमा (६) अने पश्चिम अर्धभागमां (६) तथा पुष्कराधना पूर्व अर्धभागमा (६) अने पश्चिम अर्ध