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खंडो ते धनुपना पृष्ठ भाग जेवा होवाथी धनुपृष्ठ कहेवाय छे, अने तेना वे छेडाने विषे लांबी रहेली जे अजुप्रदेशनी पंक्ति ते जीवा (प्रत्यंचा) जेवी होवाथी जीवा कहेवाय छे. आ सूत्रनो संवाद करनार अर्धी गाथा आ प्रमाणे छे-"आडनीश हजार सात सो ने चालीश ३८७४० योजन तथा दश कळा, आटलुं धनुपर्नु (धनुपृष्ठन) प्रमाण छे" (२)। तथा 'अत्थस्स त्ति'-अस्त एटले मेरु, केम के ते मेरुना आंतरावाळो सूर्य अस्त पामे छे, तेथी अस्त एटले मेरु कहेवाय छे, ते मेरु नामना पर्वतराजनो एटले प्रधान गिरिनो बीजो कांड एटले विभाग आडत्रीश हजार योजन ऊंचपणे कह्यो छे. तथा मतांतरे त्रेसठ हजार योजन कह्यो छे. ते विष का छे के-" मेरुपर्वतना त्रण कांड (विभाग) छे. तेमां पहेलो कांड पृथ्वी, पथ्थर, वज्र अने शर्करा( कांकरा )मय छे, बीजो कांड रजत, जातरूप, अंकरत्न अने स्फटिक रत्नमय छ, तथा बीजो कांड एकाकारे जांबूनद( सुवर्ण )मय छे. तेमां पहेला कांडर्नु बाहल्य ( ऊंचपणुं ) एक हजार योजन- कह्यु छ, बीजा कांडनु त्रेसठ हजार योजन अने त्रीजा कांडनु छत्रीश हजार योजननुं चाहल्य कयुं छे, तथा मेरुनी उपरनी चूला चाळीश योजन ऊंची छे. (३)॥ सूत्र-३८॥ ___ हवे ओगणचाळीशमुं स्थान कहे छे.- मू०--नमिस्स णं अरहओ एगूणचत्तालीसं आहोहियसया होत्था । १। समयखेत्ते एगूण- | चत्तालीसं कुलपवया पन्नत्ता, तं जहा तीसं वासहरा, पंच मंदरा, चत्तारि उसुकारा । २ । दोच्च