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________________ श्री समवायाङ्ग सूत्र ॥ चोथुं अंग ॥१३०॥ सिद्धांतमां कहेला अर्थवाएं अथवा वक्तानी सज्जनताने सूचनाएं १०, असंदिग्धत्व एटले संदेह रहित ११, अपहृतान्योरत्व एटले परना दूषणना अविषयवाळु १२, हृदयग्राहित्व एटले श्रोताना मनने हरण करे तेनुं १३, देशकालाव्यतीतत्व एटले प्रस्तावने उचित १४, तच्चानुरूपत्व एटले कहेवाने इच्छेली वस्तुना स्वरूपने अनुसरतुं १५, अप्रकीर्णप्रसृतत्व एटले सारा संबंधवाळा वचनना विस्तारवाएं अथवा असंबंध अने अनधिकारीपणाना अतिविस्तारना अभाववाळु १६, अन्योन्यगृहीतत्व एटले शब्दोनी अने वाक्योनी परस्पर अपेक्षा सहित १५, अभिनतत्व एटले कहेनारनी के कहेवा लायक पदाfit भूमिका अनुसर १८, अतिखिग्धमधुरत्व एटले अमृत अने गोळ विगेरेनी जेम सुख करनार १९, अपरमर्मवेधत्व - एटले परना मर्मने उघाडा न करे तेवुं २०, अर्थधर्माभ्यासानपेतत्व एटले अर्थ अने धर्मना अभ्यास सहित २१ उदारत्व एटले कवा लायक अर्थनी अतुच्छता अथवा गुंथणीना विशेष गुणवा २२, परनिंदात्मोत्कर्षविप्रयुक्तत्व एनो अर्थ प्रसिद्ध छे. २३, उपगतश्लाघत्व एटले कहेला गुणोनो संबंध होवाथी श्लाघाने पामे तेवुं २४, अनपनीतत्व एटले कारक ( कर्ता, कर्म विगेरेनी विभक्ति) काळ, वचन, लिंग विगेरेना व्यत्यय ( फेरफार ) रूप वचनना दोपथी रहित २५, उत्पादिता-च्छिन्नकौतूहलत्व एटले श्रोताओने पोताना विषयमां अविच्छिन्न (निरंतर) कौतुक उत्पन्न करे तेनुं २६, अद्भुतत्व अने अतिविलंबितत्व ए वेनो अर्थ प्रसिद्ध छे २७-२८, विभ्रमविक्षेप किलिकिंचितादिविमुक्तत्व - विभ्रम एटले बक्ताना मननी भ्रांति, विक्षेष एटले ते वक्ताना ज कहेवा लायक अर्थ प्रत्ये आसक्ति रहित, किलिकिंचित एटले क्रोध, भय, अभिलाप विगेरे भावोनुं एकसाथे वारंवार करयुं ते, ' आदि ' शब्दथी वीजा मनना दोपोनुं ग्रहण करयुं, ते सर्व दोपोथी रहित २९, समवाय ३५ ॥ ॥१३०॥
SR No.010536
Book TitleAgam 04 Ang 04 Samvayang Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJethalal Haribhai
PublisherJain Dharm Prasarak Sabha
Publication Year1939
Total Pages681
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_samvayang
File Size44 MB
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