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करनार थतुं नथी. ए त्रीशमो अतिशय ३०, अतिवृष्टि एटले अधिक वरसाद थतो नथी. ए एकत्रीशमो अतिशय ३१, - अनावृष्टि एटले वरसादनो अभाव थतो नथी. ए वत्रीशमो अतिशय ३२, दुर्भिक्ष एटले दुकाळ होतो नथी. ए तेत्रीशमो अतिशय ३३, 'उप्पादया वाहि त्ति' - उत्पात एटले अनिष्टने सुचवनारा रुधिरना वरसाद विगेरे अने तेना कारणरूप जे अर्थी ते औत्पातिको तथा ज्वरादिक व्याधिओ, ते सर्वनो उपशम एटले अभाव होय छे. ए चोत्रीशमो अतिशय ३४. वळी अहीं पच्चाहरओ (भगवान उपदेश आपे त्यारे) आ एकवीशमा अतिशयथी आरंभीने छेवट सुधीना जे चौद अतिशयो कहा ते अने एक प्रभामंडळ बारमो अतिशय कुल पंदर अतिशयो कर्मक्षयथी थयेला होय छे, बाकीना भवने (जन्मने) आश्रीने कहेला चार सिवायना पंदर अतिशयो देवना करेला होय छे. आ अतिशयो कोइ ग्रंथमां अन्यथा प्रकारे जोवामां आवे छे मतांतर जाणवा. (१) ॥ ( चार जन्मथी, १९ देवकृत अने ११ अतिशयो घातिकर्मना क्षयथी थयेला अन्यत्र का छे ) ' चकवद्विविजय त्ति ' - चक्रवर्तीने जीतवा लायक क्षेत्रना प्रदेशो ( विजयो) चोत्रीश छे (२) । उत्कृष्टपणे चोत्रीश तीर्थक उत्पन्न थाय छे एटले संभवे छे, परंतु एक ज समये जन्मे छे एम नहीं. केमके एक समये चारज तीर्थंकरोनो जन्म संभवे छे ते आप्रमाणे- मेरुपर्वत उपर पूर्व अने पश्चिम दिशाए एक एक शिलातल छे, तेना उपर बचे सिंहासनो होय छे तेथी वेनोज अभिषेक थाय छे, तेथी करीने (ते बन्ने दिशामां) बबेनोज जन्म होय छे परंतु ते वखते दक्षिण अने उत्तर दिशाना क्षेत्रमां दिवस होय छे तेथी भरत अने ऐवतने विषे जिनेश्वरनो जन्म होतो नथी. केमके जिनेश्वरनो जन्म अर्धरात्रिए ज होय छे. ४ 'पढमेत्यादि' - पहेली पृथ्वीमां त्रीश लाख नरकावासा छे, पांचमी पृथ्वीमां त्रण लाख, छठ्ठीमा एक लाखमां पांच