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-6Sमायामा
all डीटवाळा अने पांच वर्णवाळा पुष्पोवडे ढींचणप्रमाण पुष्पप्रकर करवामां आवे छे १८, अमनोज्ञ शब्द, स्पर्श, रस, रूप
अने गंधनो अभाव होय छे १९, मनोज्ञ शब्द, स्पर्श, रस, रूप अने गंधनो प्रादुर्भाव होय छे २०, उपदेश आपती वखते Lal भगवाननो स्वर सर्वना हृदयने गमे तेवो अने एक योजन सुधी व्यापी रहेलो होय छ २१, भगवान अर्धमागधी भापाए करीने
धर्म कहे छे २२, ते पण अर्धमागधी भाषा बोलवामां आवे छे त्यारे (सांभळनारा) ते सर्वे आर्य, अनार्य, द्विपद, चतुष्पद, मृग, पशु, पक्षी, सरीसृप (सर्प) विगेरेने पोतपोतानी हित, शिव अने सुखने आपनारी भापापणे करीने परिणमे छे २३, पूर्वे जेओए वेर बांध्यु होय तेवा प्राणीओ तथा देव, असुर, नाग, सुवर्ण, यक्ष, किंनर, किंपुरुष, गरुड, गंधर्व अने महोरगा विगेरे देवो सर्वे विचित्र प्रकारना मननी शांतिने पामीने अरिहंतना पादमूळने विपे रही धर्मने सांभळे छ २४ कना प्रवचनना विद्वानो पण त्यां आव्या होय तो भगवानने वांदे छे २५, तेओ आव्या सता भगवानना पादमूलने विपे निरुत्तर थइ जाय छ २६, ज्यां ज्यां अरिहंत भगवान विचरे छे, त्यां त्यां पचीश योजन सुधी ईति होती नथी २७, मारी (मरकी ) होती नथी २८, स्वचक्रनो भय होतो नथी २९, परचक्रनो भय होतो नथी ३०, अतिवृष्टि होती नथी ३१. Mel अनावृष्टि होती नथी३२, दुर्भिक्ष होतो नथी ३३, पूर्व उत्पन्न थयेला उत्पातो अने व्याधिओ तत्काळ उपशांत थाय छे-नष्ट थाय छे ३४ (१)॥ . जंबूद्वीप नामना द्वीपने विपे चोत्रीश चक्रवर्तीना विजयो कह्या छे (२)। जंबूद्वीप नामना द्वीपने विषे चोत्रीश दीर्घ | वैताढ्य पर्वतो कह्या छ (३)। जंबूद्वीप नामना द्वीपने विषे उत्कृष्टथी चोत्रीश तीर्थकरो उत्पन्न थाय छे (४) । असुरेंद्र
SCINDIATIMEarosana
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