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टीकार्थ-एकत्रीश, स्थानक सुगम छे. विशेष ए के सिद्धोनी आदिमां एटले सिद्धपणाना पहेला समयने विष ज |जे गुणो ते सिद्धादिगुण कहेवाय छे, ते गुणो आभिनिवोधिकावरण ( मतिज्ञानावरण) विगेरेना क्षयरूप छे (१). मंदर एटले मेरु पर्वत. ते पृथ्वीतळने विषे दश हजार योजनना विष्कंभवाळो छ, तेथी करीने पृथ्वीतळ उपर, उपर कहेली परिधिना प्रमाणवाळो छे. (२). "जया णं सूरिए इत्यादि-सूर्यना एक सो ने चोराशी मांडळा होय छे. मंडळ एटले ज्योतिषीने चालवानो मार्ग कहेवाय छे, तेमां जंबूद्वीपनी अंदर एक सो ने एंशी योजनमां पांसठ सूर्यमंडळो छ, तथा लवणसमुद्रमांत्रण सो ने त्रीश योजन अवगाहीने (जइए त्यां सुधीमां) एक सो ने ओगणीश सूर्यमंडळो छे. तेमां सर्ववाह एटले समुद्रने विषे रहेला मंडळोमांनुं जे छेल्लु मंडळ, तेनो आयामविष्कम एक लाख छ सो ने साठ योजननो छे. तेनो गोळ क्षेत्रना गणितने हिसावे परिधि करीए तो त्रण लाख अढार हजार त्रण सो ने पंदर (३१८३१५) योजननो थाय छे. आटलायोजन प्रमाण क्षेत्रने सूर्य के रात्रिदिवसे करीने ओळंगे छे. तेना (ते वे रात्रिदिवसना) साठ मुहूर्तो होय छे, तेथी ते अंकने साठे भागवाथी जे भागभां आवे तेटला योजनवाल्लु क्षेत्र एक मुहूर्त्तमा ओळंगे छे. ते क्षेत्रप्रमाण पांच हजार त्रण सो ने पांच योजन अने एक योजनना साठीया पंदर भाग (५३०५३९ ) जेटलं थाय छे. आ अंकने अर्ध दिवसवडे | एटले अर्ध दिवसना मुहूत्तोंवडे गुणवानो छे. तो ज्यारे सूर्य सर्ववाह्य मंडळमां चाले छे त्यारे दिवस प्रमाण वार मुहूर्त्तनुं | होय छे, तेनुं अर्ध करवाथी छ मुहूर्त आवे छे, तेथी छ मुहूर्त्तवडे उपरना एक मुहूर्त्तनी गतिना प्रमाण (५३०५३७ ) ने गुणीए त्यारे चक्षुस्पर्शवाळी गतिनुं प्रमाण थाय छे.ते रीते गुणवाथी एकत्रीश हजार आठ सो ने एकत्रीश योजन अने