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________________ समवाय २७॥ Rel वीश हजार वर्षे आहारनी इच्छा थाय छे (२)। एवा केटलाक भवसिद्धिक जीवो छ के जेओ सत्तावीश भवने ग्रहण समवायाङ्ग करवावडे सिद्ध थशे, बुद्ध थशे, मुक्त थशे, परिनिर्वाण पामशे, अर्थात् सर्व दुःखनो अंत करशे. (३)॥ पत्र टीकार्थ-सत्तावीशमुं स्थानक पण प्रगट ज छे. विशेष एके-स्थितिना सूत्रोनी पहेला छ सूत्रो कयां छे. तेमां अनचोधू अंग गारना-साधुना चारित्रविशेपरूपी जे गुणो ते अनगार गुणो कहेवाय छे. तेमां पांच महाव्रतो ५, पांच इंद्रियोनो निग्रह १०, क्रोधादिक चारनो त्याग १४, त्रण सत्य, तेमां भावसत्य एटले शुद्ध अंतरात्मापणुं, करणसत्य एटले प्रतिलेखनादिक क्रिया ॥९७॥ जे प्रमाणे शास्त्रमा कही छे ते प्रमाणे सम्यक् प्रकारे उपयोगपूर्वक करवी ते अने योगसत्य एटले मन विगेरेनुं सत्यपणुं KO १७, क्षमा-मां क्रोध अने माननुं प्रगट रीते स्वरूप देखातुं न होय एवा द्वेप नामनी सर्व प्रकारनी अप्रीतिनो जे अभाव ते क्षमा कहेवाय छ, अथवा क्रोध अने मानना उदयनो निरोध एटले क्रोध अने मानने उदयमांज आववा न देवा ते क्षमा कहेवाय छे. पूर्वे (उपर) क्रोधनो त्याग अने माननो त्याग (निरोध) कह्यो छे ते उदय पामेलानो निरोध कह्यो छे, तेथी पुनरुक्त दोष आवतो नथी १८, विरागता एटले दरेक जातनी आसक्तिनो अभाव अथवा माया अने लोभनो अनुदय (तेमने उदयमां आववा न देवा ते). पूर्व मायानो त्याग अने लोभनो त्याग करो छे ते उदय पामेलानो निरोध कह्यो छे तेथी अहीं पण पुनरुक्त दोप आवतो नथी १९, मन, वचन अने कायानी समाहरणता अथवा पाठांतरमा समन्वाहरणता एटले अकुशळ एवा ते त्रणेनो निरोध करवो ते २२, ज्ञानादिक त्रणनी प्राप्ति २५, वेदनातिसहनता-शीतादिकने अत्यंत सहन करवा ते २६ तथा मारणांतिकातिसहनता-कल्याणमित्रनी बुद्धिए
SR No.010536
Book TitleAgam 04 Ang 04 Samvayang Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJethalal Haribhai
PublisherJain Dharm Prasarak Sabha
Publication Year1939
Total Pages681
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_samvayang
File Size44 MB
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