SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 241
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ रिद्रिय जाI साथै पचीश, कोइक वखत त्री नियाजाइनाम एम जे लख्यु लाज (कर्म) बांधे छे. तेमा केम के अपर्याप्तक ज आ अप्रशस्त परावर्तमान प्रकृतिओने बांधे छे. आवो जीव पण संक्लिष्ट परिणामवाळो होय ते जांधे छे तेथी संकिष्ट परिणामवाळो एम का छे, तेवा परिणामवाळो पण वींद्रियादिक अपर्याप्तकने योग्य ज (कर्म) बांधे .तेमां एटले पचीश कर्मप्रक्रतिओ जे गणावी छे तेमा 'विगलिंदियजाइनाम एम जे लख्यं छे तेनो अर्थ आप्रमाणे करखो-कोडक वखत द्वींद्रिय जाति साथे पचीश, कोइक वखत त्रींद्रिय जाति साथे पचीश, एज प्रमाणे अन्यथा पण एटले कोइक वखत चतुरिद्रिय जाति साथे पचीश प्रकृतिओ जाणवी. (अर्थात विकलेंद्रिय जातिमांथी बे,त्रण के चार इंद्रियमांथी एकने वांधे के.) (६)। 'गंगा इत्यादि'-पचीश गाउना विस्तारवाळो जे प्रपात (पडवू) ते वडे करीने एटलो अहीं अध्याहार राखचो. | 'दुहओ त्ति'-बन्ने दिशाने विपे एटले पूर्व दिशामां गंगा अने पश्चिम दिशामां सिंधु चाले छे, ते बन्ने पद्मद्रह- मांथी नीकळी पांच सो योजन सुधी पर्वत उपर चाली पछी दक्षिण तरफ वळे छे, त्यां आगळ 'घडमुहपवित्तिएणं ति'-घटना मुखनी जेवा पचीश कोश पहोळी जिह्वायाळा मकरना मुखरूपी परनाळमाथी प्रवर्तला (नीकळेला) मोतीना हारनी जेवा संस्थानवाळा ( आकारवाळा) प्रपातवडे एटले पडता जळना समूहवडे (प्रवाहवडे) सो योजन N/ ऊंचा हिमवंत पर्वतनी नीचे रहेला पोतपोताना प्रपातकुंडने विषे पडे छे (७) । एज प्रमाणे रक्ता अने रक्तवती नामनी नदीओ पण जाणवी. तेमां विशेष ए छ के-शिखरी नामना वर्षधर (पर्वत) उपर रहेला पुंडरीक नामना द्रहमांथी ते बन्ने नदीओ नीकळीने पडे छे (८)। तथा लोकविंदुसार ए नामनुं चौदमुं पूर्व छ । सूत्र-२५॥ हवे छवीस स्थानक कहे छे
SR No.010536
Book TitleAgam 04 Ang 04 Samvayang Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJethalal Haribhai
PublisherJain Dharm Prasarak Sabha
Publication Year1939
Total Pages681
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_samvayang
File Size44 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy